ग़ज़ल
जुल्फ काली घटा है |
हुस्न की मल्लिका है ||
देख उनको सिले लब |
होश भी फाख्ता है ||
आदमी युग युगों से |
चाँद को पूजता है ||
साथ तुम हो तो मंजिल |
रात भर फासला है ||
बात करते नहीं क्यों |
बोल दो क्या गिला है ||
लव कि जेहाद या फिर |
इश्क का सिलसिला है ||
फोन पर रात दिन क्यों |
हम से क्या वास्ता है ||
— अनन्त आलोक
खूबसूरत ग़ज़ल .
वाह वाह आलोक जी!
वाह वाह !