मेरी जिंदगी का एक लम्हा !
अपने गाँव से लेकर बनारस तक खुशी पूर्वक शिक्षा लेकर आनन्द पूर्वक जीवन व्यतीत कर रहे थे। तभी एक तूफान आया हमारे जीवन के बरबादी की शुरूआत लेकर। एक फूल की तरह हमारी जिन्दगी सवंर ही रही थी कि बारिश के साथ आये तूफान ने फूल की पंखुड़ियों को झड़ा दिया। बस बाकी रह गयी वो पत्तियां और टहनियां जिनके जरिए जीना है। इसी बिच आशा की किरण जगी, जिसके सहारे मैं आगे बढ सकता था वो शिक्षण का आधार था। नहीं पता था इस आशा की किरण में कहीं निराशा भरी दुनिया कि भी शुरूवात होती है यही आधार ने एक तरफ जीने की कला सीखाई वही दूसरी तरफ संघर्ष करने की या समस्याओं से निपटने की राह दिखाई।
उसी आशा की किरण के सहारे मैं आगे बढ सकता था । तभी इस पतझड़ रूपी दुनिया में कोई बारिश की बुन्दे टपकाकर ताजा करने की कोशिश की और उसी के सहारे यह पतझड़ धिरे-धिरे हरा-भरा होकर लहलहाने लगा और खुशी के मारे झूम उठा। इतना झूम उठा कि वह भूल गया कि पतझड़ की प्रक्रिया अपने समय पर निरन्तर चलती रहती है और इसी के साथ वो धीरे-धीरे आँखों के रास्ते दिल में उतर गई। बस सिलसिला शुरू हुआ एक सुहाने पल का। पता नहीं था इस सुहाने पल में छिपी हुई गम की बदली है, जो छायेगी तो छाये ही रह जायेगी ।
@रमेश कुमार सिंह
अच्छा संस्मरण !
धन्यवाद श्रीमान जी।
अच्छी लघु कथा .
शुक्रिया श्रीमान जी!