प्यासी -प्यासी धरती …..
आस लगी है सारी नगरी ,
कब आएगी वर्षा रानी |
इस प्यासी -प्यासी धरती पर,
कब बरसाओगी बूंदा- बूंदी |
मक्खी -मच्छर भिन्न -भिन्न करते ,
गर्मी वाली सता आखरी |
अपनी ताकत दिखा जगत को ,
गायब कर दो धुप सुनहरी |
मन की पीड़ा अब तुम समझो ,
चैन न मिलता इस दुपहरी |
बहा दो अब नदी की धरा ,
ताल – तलैया भर दो सारा |
मेरी बस एक विनती सुनलो ,
उमड़ -घुमड़ बरसा दो पानी |
निवेदिता चतुर्वेदी
अच्छी सामयिक कविता !
dhanybad
अच्छी कविता .
dhanybad jee