बाबुल की सीख
बेटी ब्याह के जब पराए घर जाती है |
सीख अपने बाबुल से यही लेकर जाती है |
अब खत्म तुम्हारी मनमानी हो गई है |
शुरू तुम्हारी इक नई कहानी हो गई है |
कदम हर अपना सोच समझ कर उठाना |
बाबुल का सदा अपने तुम मान बड़ाना |
अब साथ हमारा तुमसे खत्म होता है |
आगे का सफर तय तुम्हे खुद करना है |
सही गल्त को सोच समझ कर चुनना है |
तुम्हारे किसी फैसले से उन्हें दुख ना पहुंचे |
वो भी तो हैं पलकों में कितने सपने सजाए हुए |
स्वागत मे तुम्हारी देखो आँखें बिछाए हुए |
शान तुम्हें उनकी अब बनना है मान तुम्हें उनका करना है |
यहाँ बड़ों के साथ मिलजुल कर प्यार से तुम्हें रहना है |
है ससुराल तुम्हारा उसे अपना तुम्हें अब बनाना है |||
— कामनी गुप्ता जम्मू
बहुत अच्छी कविता !
धन्यवाद सर जी..
very good. great
Thanks ji