सार छंद/छन्न पकैया
छन्न पकैया, छन्न पकैया, कल की पीड़ित नारी,
कितनी है खुश आज ओढ़कर, दुहरी ज़िम्मेदारी।
छन्न पकैया, छन्न पकैया, खेत खड़ा है भूखा,
अन्न देखकर गोदामों में, खुलकर हँसा बिजूखा।
छन्न पकैया, छन्न पकैया, फसल बाढ़ ने खाई,
वे फाँसी पर झूल रहे, ये, सर्वे करें हवाई।
छन्न पकैया, छन्न पकैया, बात नहीं यह छोटी,
कल उसको खाते थे हम, अब, हमें खा रही रोटी।
छन्न पकैया, छन्न पकैया, यह ऋतु बारहमासी,
पुत्र विदेशी साहब, घर में, पिता हुए बनवासी।
छन्न पकैया, छन्न पकैया, हतप्रभ है योगासन,
शीर्षासन में खड़ा आमजन, नेता करें शवासन।
छन्न पकैया, छन्न पकैया, हर सच्चाई नंगी,
खिन्न हुआ मन, जब देखीं ये, तस्वीरें दो रंगी
— कल्पना रामानी
बहुत धन्यवाद गुरमेल जी, आजकल रचनाकर पुरानी छंद विद्या फिर से जीवित हो रही है, अनेक समूह सिखाने का सफल प्रयास भी कर रहे हैं, यह शुभ संकेत है।
छंद बहुत अछे लगे , हमारे पंजाब में भी ऐसे ही मिलते जुलते छंद बोला करते थे ,उदाहरण है ,
छंद प्रागे आइये जाइए ,छंद प्रागे मोर ,
अछे दिन हैं आ गए ,लोग मचाएं शोर .
हा हा हा भाई साहब, ऐसे छंद हमारे यहाँ शादियों में दुल्हे से बुलवाए जाते हैं. एक उदाहरण लीजिये-
छंद परागे आइये जाइये छंद परागे पुड़िया.
छंद गया मैं भूल सभी जब सामने आई गुड़िया.
(यहाँ गुड़िया साली का नाम है.)
बहुत सुन्दर !
हार्दिक आभार आ॰ सिंघल जी