ग़ज़ल
हमें चिराग़ों के लाले, तुझे है इससे क्या,
ऐ ग़ैर घर के उजाले, तुझे है इससे क्या।
हमारे खून – पसीने पे दावतें तेरी,
हमें हैं सूखे निवाले, तुझे है इससे क्या।
यकीन करके तेरी बात पे, ये हाल हुआ,
सतायें आईने वाले, तुझे है इससे क्या।
सितम का बोझ उठाते लरज़ रहे हैं कदम,
कोई भी आ के सम्हाले, तुझे है इससे क्या।
तेरा खिताब है मंजिल, मिज़ाज कठिनाई,
पड़ेंगे पाँव में छाले, तुझे है इससे क्या।
तुझे तो उजले लिबासों को पूजना है ‘होश’,
भले हों दिल के वो काले, तुझे है इससे क्या।
ग़ज़ल अच्छी लगी .
बेहतरीन ग़ज़ल !