कविता

दो आंखें

इंतज़ार भरी दो आँखें
उम्मीद भरी दो आँखें
आस भरी दो आँखें
माथे की बिंदिया बुलाये
आँखों की उम्मीद बुलाये
बिना आवाज़ दो आँखे
आंसू बह न पायें
पलके झपक न पायें
बेबस हैं दो आँखें

रमा शर्मा, जापान 

रमा शर्मा

लेखिका, अध्यापिका, कुकिंग टीचर, तीन कविता संग्रह और एक सांझा लघू कथा संग्रह आ चुके है तीन कविता संग्रहो की संपादिका तीन पत्रिकाओ की प्रवासी संपादिका कविता, लेख , कहानी छपते रहते हैं सह संपादक 'जय विजय'

2 thoughts on “दो आंखें

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    कविता बहुत अच्छी लगी .

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूब !

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