कविता

यह ही तेरा ठिकाना

कितना भी झूठ बोलों नही = काम आएगा,
तेरे कर्मो सब हिसाब यही =साथ जाएगा /
माया और ये मोहमे=,भूला है -तू डगर,
कितना बटोर ले धन =,जाएगा इक कफ़न /
दो -चार दिन ये रोकर, = भूलेंगे सब सफ़र,
साल मे कभी-कभी = चढ़ाएँगे ए हार/
जीते रहे तो हार थी=,अब हार तेरी हार /
लूट अरु खसोट कर =, कितना किया इकठ्ठा,
अब काम तेरे आएगा= नव बाँस का फॅट्टा/
द्वार पर नहीं रखेंगे = लाल हैं तेरे/
लेकर चले हैं चार आज=कह- अलविदा ,
रिश्ते ने छोड़ा साथ अब= कह अलविदा/
तेरा यही शहर है =यह ही तेरा ठिकाना,
कितना करो फरेब यारा = यही है तराना /
राजकिशोर मिश्र”राज”

राज किशोर मिश्र 'राज'

संक्षिप्त परिचय मै राजकिशोर मिश्र 'राज' प्रतापगढ़ी कवि , लेखक , साहित्यकार हूँ । लेखन मेरा शौक - शब्द -शब्द की मणिका पिरो का बनाता हूँ छंद, यति गति अलंकारित भावों से उदभित रसना का माधुर्य भाव ही मेरा परिचय है १९९६ में राजनीति शास्त्र से परास्नातक डा . राममनोहर लोहिया विश्वविद्यालय से राजनैतिक विचारको के विचारों गहन अध्ययन व्याकरण और छ्न्द विधाओं को समझने /जानने का दौर रहा । प्रतापगढ़ उत्तरप्रदेश मेरी शिक्षा स्थली रही ,अपने अंतर्मन भावों को सहज छ्न्द मणिका में पिरों कर साकार रूप प्रदान करते हुए कवि धर्म का निर्वहन करता हूँ । संदेशपद सामयिक परिदृश्य मेरी लेखनी के ओज एवम् प्रेरणा स्रोत हैं । वार्णिक , मात्रिक, छ्न्दमुक्त रचनाओं के साथ -साथ गद्य विधा में उपन्यास , एकांकी , कहानी सतत लिखता रहता हूँ । प्रकाशित साझा संकलन - युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच का उत्कर्ष संग्रह २०१५ , अब तो २०१६, रजनीगंधा , विहग प्रीति के , आदि यत्र तत्र पत्र पत्रिकाओं में निरंतर रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं सम्मान --- युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच से साहित्य गौरव सम्मान , सशक्त लेखनी सम्मान , साहित्य सरोज सारस्वत सम्मान आदि