गीत/नवगीत

आतंकवाद पर सियासत

(पाकिस्तानी आतंकी कासिम को ज़िंदा पकड़ने के सन्दर्भ में भारत की आतंकवाद पर बँटी हुयी सियासत और पुराने ढर्रे पर कटाक्ष करती मेरी ताज़ा रचना)

जश्न मनाओ,ताली पीटो, और वतन पर नाज़ करो
संसद चाहे ठप्प पड़ी हो, पर ऊंची आवाज़ करो

दो जवान के बलिदानों पर एक दरिंदा पकड़ा है
कोई तीर नही मारा जो कासिम ज़िंदा पकड़ा है

सीने आज तुम्हारे बेशक फक्र समझ कर फूले हैं,
लेकिन शायद सब मेमन की खातिरदारी भूले हैं,

भूल गए अफज़ल की फाँसी पर तुम रोने वालों को,
भूल गए बटला हाउस पर कांटे बोने वालों को,

भूलगए क्या भटकल का मज़हब दिखलाने वालो को
और वही अज़मल कसाब,मासूम बताने वालों को,

हमदर्दों का देश यहाँ पर चाहत बाँटी जाती है,
यहाँ करें इफ्तार वहां पर गर्दन काटी जाती है,

जो पहले से जेलों में हैं बन्द,रहे खुशहाली में,
दहशतगर्दी मौज मनाती बिरियानी की थाली में,

कासिम जाए जेल,वहां पर हांड़ी बड़ी चढ़ा देंगे,
बकरे मुर्गे की थोड़ी सप्लाई और बढ़ा देंगे,

कृपा रहेगी इस कासिम पर भूषण और शक़ीलों की,
आधी रात लगी देखोगे लाइन कई वकीलों की,

और मिडिया वाले कुछ ऐसी कवरेज दिखाएंगे,
केवल कासिम के ही अब्बू अम्मी को दिखलायेंगे

इधर शहीदों के आँगन के सपने टूटे लगते है,
दहशत से लड़ने के ये अंदाज़ अनूठे लगते हैं,

ये गौरव चौहान कहे, सारे रस्ते मुड़ जाएंगे
कासिम क्या,लखवी हाफिज के परखच्चे उड़ जाएंगे

पाकिस्तान तभी रगड़ेगा नाक रहम की आशा में,
जिस दिन भारत बोल उठेगा इज़राइल की भाषा में,

—कवि गौरव चौहान