फौजी की पत्नी
फौजी की पत्नी हूँ
नहीं इख्तियार मुझे मिलन के गीत गुनगुनाने का
प्रीत के झूले झूलने का
चूड़ी की खनक से सजन की रिझाने का
रुठने का मनाने का
पायल की रुनझुन से घर आँगन चहकाने का
सिन्दूर की लाली पर इतराने का
क्योंकि सीमा पर कौनसी गोली पर
बिखर जाये मेरे जीवन की लड़ी
कब मैं फौजी की पत्नी से शहीद की पत्नी कहलाऊँ
है यही तो बस किस्मत हम फौजी की पत्नी की
हर पल बस थमी सहमी रुकी रुकी सी रहे सासें
ऐसे में क्या भाये कोई साज सिंगार कोई दिन या कोई त्यौहार।।
फौजी की पत्नी हूँ मैं कहते सभी कर गर्व इस बात पर
कौन देखे मेरे मन की पीड़ा
जिस का नसीब सिर्फ और सिर्फ
इंतज़ार इंतज़ार सूने सूने दिन और रातों का।।
— मीनाक्षी सुकुमारन
बहुत अच्छी कविता ! उत्तम भाव !