दोहे
छाया को देता नहीं, कण्टक वृक्ष खजूर।
जो हैं कुटिल स्वभाव के, रहना उनसे दूर।१।
करते सदा परोक्ष में, इज्जत पर जो वार।
जब होते वो सामने, तब करते मनुहार।२।
ज्यादा मीठे बोल में, होती झूठी प्रीत।
ऐसे लोगों से सदा, करो किनारा मीत।३।
मिलते हैं संसार में, पग-पग पर आघात।
जाँच-परख कर कीजिए, साझा मन की बात।४।
छल-फरेब का जगत में, बिछा हुआ है जाल।
पानी वाले दूध में, आता खूब उबाल।५।
छोटी-छोटी बात पर, होना नहीं अधीर।
हरदम रहना चाहिए, धीर और गम्भीर।६।
चरैवेति सिद्धान्त का, रखना हरदम ख्याल।
जिनमें नहीं प्रवाह है, सड़ जाते वो ताल।७।
अभिमानी गिरि पर बहुत, आते हैं भूचाल।
थमे हुए जल में सदा, बन जाते शैवाल।८।
धन-दौलत को पाय कर, मत करना अभिमान।
घर आये मेहमान का, करना मन से मान।९।
कभी न करना कहीं भी, कोई लूट-खसोट
नीयत में लाना नहीं, अपनी कोई खोट।१०।
दगाबाज-मक्कार का, रहता खाली हाथ।
श्रम से अर्जित द्रव्य ही, सदा निभाता साथ।११।
— डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’
एक से बढ़ कर एक सुंदर दोहे आदरणीय
आपका आभार