दोहे की धड़कन में हिंदी
इंटरनेट के युग में , फलते हिंदी ब्लाॅग।
उर सिंधु के भावों से , रू – ब – रू होते लोग। १
हिंदी की धड़कनों में , बहे व्याकरण धार।
रस , छंद , अलंकार हैं , काव्य के श्रृंगार। २
हिंदी अब वैश्विक हुई , भारत की पहचान।
विज्ञापनों से बढ़ रही , हिन्द की शक्ति – शान। ३
बॉलीवुड के चलचित्र , चलते हिंदी चाल।
करें करोड़ों की कमाई , ‘ मंजू ‘ सालों साल। ४
अहिन्दी भाषी वास्ते , किया इसे आसान।
राजभाषा हेतु गढ़ा , सरल हिंदी विधान। ५
एकता की भाषा है , राष्ट्र की है जान।
चुनौतियों में चमकती , हिंदी की पहचान। ६
संस्कृत हिंदी की माँ , साहित्य है विशाल।
उपसर्ग – प्रत्यय लगा , बढ़ा शब्द भंडार। ७
लिपि देवनागरी बनी , है वैज्ञानिक नींव।
जो लिखे वही बोलते , देती हिंदी सीख। ८
आंदोलन की भाषा , बनी जुड़ गए लोग।
हिंदी अपनाएं प्रांत , जगजीवन में घोल। ९
बसते कबीर – सूर के , हिंदी में हैं प्राण।
जिस पर रीझ के मीरा , नाची गा के श्याम। १०
बिगड़े हिंदी स्तर पर , करें हम सब सुधार।
हम सब का है दायित्व , हिंदी से हो प्यार। ११
हिंदी भाषा में लगे , शब्द के चार चाँद।
भावों की साधना में , सजे रस – अलंकार। १२
— मंजु गुप्ता
आदरणीया सुंदर भाव लाजवाब सृजन जय माँ शारदे
दोहों के भाव अच्छे हैं पर तकनीकी दृष्टि से बहुत कमजोर हैं. दोहा छंद को आपने समझा ही नहीं है.