खुदगर्ज दुनियां में….
खुदगर्ज दुनियां में, उसुलों की बात ना कर।
खिजा के वक्त में, मुस्काते गुलों की बात ना कर॥
प्रतिभाओं के शहर में, दिल की कौन सुनता है।
पत्थरों के बगीचों मे, फूलों की बात ना कर॥
दौलत के बाजार में, तेरी नेकी का वजूद नहीं है।
उनसे टकराकर, खुद से घात ना कर॥
उनकी रंगीनिया मत देख, तुझे रोटी कमानी है।
उनके उजालों में, काली अपनी रात ना कर॥
ये शौहरत ये रूतबे, यूं ही हासिल नही होते।
तूं इंसान है, इंसान ही रह, शैतानी खुराफात ना कर॥
तेरे हिस्से की हवा मिल जाये, तो काफी समझ।
अतिक्रमण का दौर है, सिद्धांत मूलों की बात ना कर॥
खुदगर्ज दुनियां में, उसुलों की बात ना कर।
खिजा के वक्त में, मुस्काते गुलों की बात ना कर॥
सतीश बंसल
अति सुंदर रचना
आभार विभा जी..