किसके हाथ जले रावण/गीत
उस रावण को भूलें अब, जो
सदियों पहले खाक हुआ।
समय कह रहा उसे जलाएँ
अंतर में जो बसा हुआ।
धनुष बाण है हाथ सभी के
राम स्वयं को सब कहते।
सज्जनता का ढोंग रचा
हर रोज़ हरण सीता करते।
पहचानें उस दानव को जो
मानवता का दम भरते
कालिख कैसे नज़र पड़े
चेहरे पर चेहरा लगा हुआ।
शोषित है जनता सारी,वो
करुण कथा अब किसे कहे
जो समर्थ हैं वही लुटेरे
हर सीमा को लाँघ रहे।
क्रियाशील चहुं ओर दशानन
गुपचुप लंका बाँध रहे
काल कैद इनकी चौखट
हर राहगीर है लुटा हुआ।
मकड़ जाल में उलझा जीवन
कुटिल कारवाँ कर्मों का
राम, जन्म लो ताज सँभालो
राज हुआ बेशर्मों का।
मन का मैल न धो पाए,पर
मनका फेरें धर्मों का
किसके हाथ जले रावण
हर इंसाँ रुस्तम छिपा हुआ।
-कल्पना रामानी