कविता

किसके हाथ जले रावण/गीत

उस रावण को भूलें अब, जो

सदियों पहले खाक हुआ।

समय कह रहा उसे जलाएँ

अंतर में जो बसा हुआ।

 

धनुष बाण है हाथ सभी के

राम स्वयं को सब कहते।

सज्जनता का ढोंग रचा

हर रोज़ हरण सीता करते।

पहचानें उस दानव को जो

मानवता का दम भरते

कालिख कैसे नज़र पड़े

चेहरे पर चेहरा लगा हुआ।

 

शोषित है जनता सारी,वो

करुण कथा अब किसे कहे

जो समर्थ हैं वही लुटेरे

हर सीमा को लाँघ रहे।

क्रियाशील चहुं ओर दशानन

गुपचुप लंका बाँध रहे

काल कैद इनकी चौखट

हर राहगीर है लुटा हुआ।

 

मकड़ जाल में उलझा जीवन

कुटिल कारवाँ कर्मों का

राम, जन्म लो ताज सँभालो

राज हुआ बेशर्मों का।

मन का मैल न धो पाए,पर

मनका फेरें धर्मों का

किसके हाथ जले रावण

हर इंसाँ रुस्तम छिपा हुआ।

 

-कल्पना रामानी

*कल्पना रामानी

परिचय- नाम-कल्पना रामानी जन्म तिथि-६ जून १९५१ जन्म-स्थान उज्जैन (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवास-नवी मुंबई शिक्षा-हाई स्कूल आत्म कथ्य- औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद मेरे साहित्य प्रेम ने निरंतर पढ़ते रहने के अभ्यास में रखा। परिवार की देखभाल के व्यस्त समय से मुक्ति पाकर मेरा साहित्य प्रेम लेखन की ओर मुड़ा और कंप्यूटर से जुड़ने के बाद मेरी काव्य कला को देश विदेश में पहचान और सराहना मिली । मेरी गीत, गजल, दोहे कुण्डलिया आदि छंद-रचनाओं में विशेष रुचि है और रचनाएँ पत्र पत्रिकाओं और अंतर्जाल पर प्रकाशित होती रहती हैं। वर्तमान में वेब की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘अभिव्यक्ति-अनुभूति’ की उप संपादक। प्रकाशित कृतियाँ- नवगीत संग्रह “हौसलों के पंख”।(पूर्णिमा जी द्वारा नवांकुर पुरस्कार व सम्मान प्राप्त) एक गज़ल तथा गीत-नवगीत संग्रह प्रकाशनाधीन। ईमेल- [email protected]