कविता

चलो जला दें अहंकार को…

चलो जला दें अहंकार को
हर दुर्गुण हर दुर्विचार को
इस जलते रावण के संग….

सत्य विजयी हर काल हुआ है
झूठ सदा बेहाल हुआ है
सदाचार हर युग पनपा है
दुष्ट का काल विकाल हुआ है
हर युग जन्में हैं परमेश्वर, करने अहंकार को भंग……
चलो जला दें अहंकार को
इस जलते रावण के संग…….

हश्र यही होता हर दंभी
हर अत्याचारी का
अंतत: सर झुकता है
हर क्रोधी व्याभिचारी का
जन्मों तक जलता रहता है
बन प्रतीक बुराई का
जो छल से छूता है दामन
किसी पराई नारी का।
सत्य सार्थक होता है स्वयं, करने को छलछंद विहंग…..
चलो जला दें अहंकार को
इस जलते रावण के संग…….

सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.

2 thoughts on “चलो जला दें अहंकार को…

  • वैभव दुबे "विशेष"

    हश्र यही होता हर दंभी
    हर अत्याचारी का
    अंतत: सर झुकता है
    हर क्रोधी व्याभिचारी का

    सुंदर रचना

    • सतीश बंसल

      आभार वैभव जी…

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