चलो जला दें अहंकार को…
चलो जला दें अहंकार को
हर दुर्गुण हर दुर्विचार को
इस जलते रावण के संग….
सत्य विजयी हर काल हुआ है
झूठ सदा बेहाल हुआ है
सदाचार हर युग पनपा है
दुष्ट का काल विकाल हुआ है
हर युग जन्में हैं परमेश्वर, करने अहंकार को भंग……
चलो जला दें अहंकार को
इस जलते रावण के संग…….
हश्र यही होता हर दंभी
हर अत्याचारी का
अंतत: सर झुकता है
हर क्रोधी व्याभिचारी का
जन्मों तक जलता रहता है
बन प्रतीक बुराई का
जो छल से छूता है दामन
किसी पराई नारी का।
सत्य सार्थक होता है स्वयं, करने को छलछंद विहंग…..
चलो जला दें अहंकार को
इस जलते रावण के संग…….
सतीश बंसल
हश्र यही होता हर दंभी
हर अत्याचारी का
अंतत: सर झुकता है
हर क्रोधी व्याभिचारी का
सुंदर रचना
आभार वैभव जी…