कविता

नया सवेरा….

आतुर है सूरज, हर तम का सीना चीर निकलने को
बांह पसारे हैं कलियां, किरणों का स्वागत करने को।
सजने लगी धरा, बिखरे हैं ओस के मोती तृण तृण पर
नया सवेरा मुस्काया, नव आशा दामन भरने को॥

खोल कमल दल पाती, करते हैं तालाबों का श्रृंगार
ललित लताये स्वागत को आतुर हैं, ले फूलों के हार।
अंगडाई लेती नव कोपल, झांक रही हैं आशा से
लुटा रही है मदहोशी, खुशबु में डूबी नवल बयार॥

कलरव कर उड चली, टोलियां नव आकाश उडानों को
हर पंछी ले नव उमंग, लालायित ऊचां जाने को।
सिन्दूरी लाली से, होने लगीं दिशाये आलौकिक
मंगल गाती सुबहा आई, जीवन गीत सुनाने को॥

अंगडाई ले आंखें लगा खोलने, हर्षित जन जीवन
नया दिवस लेकर आया है , नव उम्मीदों के नव पल।
नव उर्जा से संचित हो, झूमे पुलकित पाती पाती
नव खुशियों से आच्छादित, लगता है देखो जहाँ सकल॥

ले उपहार अपार प्रकृति, बुला रही है आ जाओ
सुबहा की इस बेला में, अनमोल खजाना पा जाओ।
चलो चले सानिध्य, धरा श्रृंगार धरे स्वागत में है
आओ विचरण करो अतुल धन स्वास्थ लाभ का पा जाओ॥

सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.