ग़ज़ल
जीवन जंग है जारी रख
बस मौत से रिश्तेदारी रख
बैठ ले जब तक जी चाहे
पर चलने की तैयारी रख
सब ना डाल खुदा पर तू
कुछ खुद भी जिम्मेदारी रख
सूरत साथ कहां तक देगी
सीरत अपनी प्यारी रख
हर बात पे कैसा समझौता
थोड़ी सी तो खुद्दारी रख
माना झूठ जरूरी है पर
सच का पलड़ा भारी रख
पैसा साथ नहीं जाएगा
अच्छे लोगों से यारी रख
— भरत मल्होत्रा