राजनीति

बिहार के चुनाव परिणाम भाजपा के लिए खतरे की बड़ी घंटी

आखिरकार बिहार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विकास का पहिया फंस ही गया। जातिवादी महागठबंधन और बाहर बनाम बिहारी जैसे मुददों ने विकास को पीछे छोड़ दिया है। यह बात बिलकुल सही निकल गयी कि बिहार की जनता का मूड भांपना कितना कठिन था एक प्रकार से देखा जाये तो दिल्ली में बैठे मीडिया के लोग भी अपने चुनावी सर्वेक्षणों पर अपना सिर खुजला रहे होंगे। वहीं सबसे आश्चर्यजनक ढंग से जिन ज्योतिषियों ने भाजपा की जीत की भविष्यवाणी की थीं उनका क्या होगा क्यायह लोग देश की जनता से गलत भविष्यवाणी के लिए देश की जनता से माफी मांगेगेे।

अब जहां भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाला गठबंधन अपनी हार की समीक्षा करेगा वहीं महागठबंधन अपनी विजय यात्रा को दूसरे राज्यों में भी फैलाने का प्रयास आरम्भ कर देगा। बिहार में भाजपा की पराजय निश्चय ही एक बहुत बड़ी पराजय है। यह पीएम मोदी की सारी कोशिशों पर पानी फेरने वाली हैं। अब विरोधी दल पूरे देश में यह प्रचार करेंगे कि पीएम मोदी की रैलियों में आने वाली भीड़ पैसे के बल पर आती है। लालू प्रसाद यादव और नीतिश कुमार ने यह दावा किया था कि हम 190 सीटों पर विजयी होगे लेकिन फिलहाल वह भी नहीं हुआ।
प्रारम्भिक समीक्षा अनुमानों से यह साफ पता चल रहा है कि बिहार की जनता ने जातिवादी समीकरणों को ध्यान मेंरखकरवोट दिया और पीएम मोदी की जंगलराज की वापसी की अपील को सिरे से खारिज कर दिया है। नीतिश कुमार से एक प्रकार से पुराने दिन वापस लौट आये हैं लेकिन अबकी बार उनका यह ताज आसान नहीं हैं क्योंकि विधानसभा में अब लालू यादव की पार्टी के विधायकों की संख्या अधिक है। अभी तक पूर्व मुख्यमंत्री नीतिश कुमार अधिक स्वतंत्र थे लेकिन अब उनके साथ लालू का परिवार चिपका है।

बिहार में भाजपा गठबंधन की पराजय के कई स्थानीय कारण थे। एक तो भाजपा ने अपने सहयोगियों के साथ सीट बंटवारे पर मंथन बहुत देर से प्रारम्भ किया और फिर अपने कोटे की जीत सकने वाली सीटें भी दबाव में आकर सहयोगियों को दें दी। यहीं नहीं भाजपा के सहयोगियों ने वंशवादी परम्परा को आगे बढ़ाते हुए एनडीए और पीएम मोदी की छवि को खराब किया। भाजपा सहयोगियों ने जिताऊ और समीकरणों के आधार पर अपने उम्मीदवार भी नहीं उतारे थे। भाजपा गठबंधन का बिहार में बेड़ा गर्क होने का सबसे बड़ा कारण कोई लोकप्रिय स्थानीय नेता का होना भी रहा। वहीं संघप्रमुख मोहन भागवत के आरक्षण संबंधी बयान ने सबकुछ तहस- नहस कर डाला। उनके बयान के कारण भाजपा अपना बचाव नहीं कर सकी। विरोधी गठबंधन के नेताओं ने मोहन भागवत के बयान को आधार मानकर भाजपा की जातिगत घेराबंदी कर डाली। जिसका असर यह हुआ कि बिहा के यादव, कुर्मी और मुस्लिम वोटरों ने सामूहिक रूप से एकत्रित होकर भाजपा को पराजित कर डाला और बिहार की कमान बिहारी को सौंपकर ही चैन की सांस ली।

भाजपा को हराने के लिए सारी शक्तियां एक हो गयी थी। दूसरे राज्यों की घटनाओं को आधार मानकर बिहार की जनता के बीच लालू -नीतिश की जोड़ी ने माहौल पैदा किया। बिहार के मुस्लिम समाज ने अब तय कर लिया है कि वह अब भाजपा को हर जगह हरायेगा क्योेंकि बहुसंख्यक हिंदू समाज घोर जातिवाद पर बंटा हुआ है। जब तक हिंदू समाज घोर जातिवाद पर बंटा रहेगा तब तक देश का विकास नहीं हो सकेगा। बिहार में मुस्लिम समाज ने एकमुश्त होकर अपने सारे वोट महागबठबंधन के पक्ष में डाल दिये है। यहां पर न तो तीसरा मोर्चा कुछ कर पाया और नहीं औबेसी कुछ कर पाये। नहीं मतों का साम्प्रदायिक आधार पर ध्रुवीकरण हो पाया। वैसे भी खबरे हैं कि बिहार में भाजपा को हराने के लिए स्थानीय नेता भी काम पर लगे थे। बीजेपी सांसद शत्रुघ्न सिंहा का हल तो जगजाहिर हैं ही लेकिन कुछ अन्य सांसदों व स्थानीय नेताओं की संदिग्ध गतिविधियों का भी पता चल रहा है। कई सांसदों पर आरोप हैं कि उन्होनें पैसे लेकर टिकट दिलवायें हैं जिसका खामियाजा भी भुगतना पड़ा।

चाहे जो हो कम से कम चुनाव परिणामों से लालू यादव की दमदार वापसी हुई हैं। अब देश की केंद्रीय राजनीति पर इसका गहरा असर पड़ने वाला हैं। मुम्बई का शेयर बाजार नतीजों का बेसब्री से इंतजार कर रहा था। ससद के आगामी सत्रोें में सरकार की ओर से अपनायी जाने वाली रणनीति पर असर पड़ेगा। भाजपा की इस पराजय से अब भाजपा व संघविरोधी लोग अपार खुशी मना रहे हैं। सभी राजनैतिक दल अपनी विचारधारा के अनुरूप खुशियां मना रहे हैं।बिहार में भाजपा को हराने के लिए सभी दल और समीकरण तथा सारी देशविरोधी ताकतें एक हो गयीं। यहां तक कि भाजपा को हराने में मौसम भी कम दोषी नहीं रहा। व बारिश न होने के कारण फसलें खराब हो गयीं और अरहर की दाल दो सौ रूप्ये तक महंगी हो गयी। बीच में कहीं- कहीं प्याज और सरसों का तेल भी महंगा हो गया जिसका लाभ विरोधी दलों ने जमकर उठाया और उन्होने नारा दे दिया अरहर मोदी। भाजपा को हराने में स्थानीय सांसदों की भूमिका की भी जांच होनी चाहिये। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि भाजपा के सांसद अहंकारी हो गये हैं तथा पीएम मोदी की रैलियोें में आने वाली भीड़ को आधार मानकर चुनाव जीतना चाह रहे हैं। आखिर क्या कारण है कि भाजपा सांसद जनता के बीच जाकर अपनी भूमिका क्यों नहीं अदा कर पा रहे हैं। अब भाजपा सांसदों को अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए कि केवल मोदी -मोदी का नारा लगाकर चुनाव नहीं जीता जा सकता हैं सभी सांसदों को धरातल पर आना पड़ेगा। बिहार चुनावों से तो लग रहा है कि यदि इस समय चुनाव करा लिये जाये तो भाजपा के हाथ से सत्ता जा भी सकती है। भारतीय जनता पार्टी व संघपरिवार तथा सभी नेेताओं के लिए यह परिणाम एक चेतावनी हैं कि अभी समय है सुधर जायें और जनता के बीच काम करेेें।

आज बिहार पराजय के बाद पीएम मोदी को हर कोई अपमानजनक शब्दों से अपमानित करनें का प्रयास कर रहा है। बिहार चुनावों में पराजय से विगत 16 महीनों से चला आ रहा पीएम मोदी व भाजपा का हनीमून पीरियड अब पूरी तरह से समाप्त हो चुका है। बिहार चुनावों में पराजय से संघपरिवार के लोगों को भी सबक लेना चाहिये तथा अपनी बयानबाजियां बंद करके पीएम मोदी को उनके विजन पर काम करने देना चाहिये। अब समय आ गया है कि भाजपा अपनें अंदर छिपे बैठे आस्तीन के सांपों जैसे शत्रुघ्न सिंहा और अरूण शौरी जैसे लोगों से किनारा करें तथा यदि ललित मोदी सहित अन्य प्रकरणोें पर संभावित करार्यवाही करे। कांग्रेसी युवराज राहुल ब्रिगेड की कंपनी ने ललित मोदी और व्यापम जैसे मुददों को उछालकर भाजपा की छवि को पहले ही आघात लगा चुकी थी जिसका असर बिहर में देखने को मिला। बिहार में भाजपा की पराजय का असर अब अन्य प्रातों मे भी पड़ना तय माना जा रहा है। बिहार में भाजपा की पराजय से यदि कोई सबसे अधिक खुश हैं तो वह हैं उप्र के सपा और बसपा के नेता।

— मृत्युंजय दीक्षित