ग़ज़ल : दिल और दिवाली
सम्भल कर तोड़ना, दिल एक नाज़ुक फूल होता है
फ़िज़ा में रूह से निकली हुई ख़ुशबू पिरोता है
ये कांटों में भी रहकर खिलखिलाता-मुस्कुराता है
मगर चुभ जाये कोई फांस, ये ता उम्र रोता है
ये दिल भी माँ का, क्या ग़ज़ब का है, अनूठा है
सदा बच्चों की ख़ातिर जागता है और सोता है
इसे महफ़ूज़ रखना तुम बुज़ुर्गों की दुआओं से
ज़रा सा रूठ जाये दिल तो सांसें रोक देता है
अगर कोई न सूझे राह तो, दिल का कहा मानो
बड़ा चंचल है ये मन, बेसबब सपने संजोता है
विजय का पर्व यह उल्लास से भरपूर होता है
पटाखे – फुलझड़ी – मिष्ठान से पुरनूर होता है
जलाओ प्यार की शम्मा ही यारों इस दिवाली में
मिलन से ‘भान’ दो दिल के, ‘अँधेरा’ दूर होता है
— उदय भान पाण्डेय ‘भान’
दिनांकः नवम्बर ११, २०१५