लघुकथा : चुनौती
पिता की बड़ी इच्छा थी कि बेटी खूब पढे–लिखे और विदेश जाये। बेटी ने उच्च शिक्षा तो प्राप्त कर ली मगर विदेश न जा पाई। संयोग से विदेश में रहने वाला लड़का मिल गया और शादी के बाद वह विदेश चली गई।
शीघ्र ही लाड़ली बेटी सुंदर से बेटे की माँ बन गई। खुशियाँ दरवाजे पर दस्तक दे रही थीं पर बेटी ने अनुभव किया, पति बदल रहा है। बाहर कुछ ज्यादा ही समय देने लगा है ।
उस रात वह अनमनी सी पति के आने का इंतजार कर रही थी। पति आया पर बेमन से बोला– सोई नहीं ?
-सोती कैसे आपके बिना !
-आदत डाल लो बिना मेरे सोने की। ज्यादा चुप रहकर तुम्हें और धोखा नहीं देना चाहता। मेरी पहले से ही एक विदेशी महिला से शादी हो चुकी है। दो बच्चों का बाप हूँ। मैं तो शादी करना ही नहीं चाहता था, पर मेरे माँ-बाप को तो वारिस चाहिए था, वह भी भारतीय बहू से। उनको उनका वारिस मिल चुका है। मेरी तरफ से तुम आजाद हो। कहीं भी रहो, कहीं भी जाओ ।
-अच्छा हुआ बता दिया। धोखा तो तुम दे ही चुके हो, पर मैं तुम्हें धोखे में नहीं रखूंगी। मैं एक वकील हूँ और एक वकील से तुम उसकी औलाद नहीं छीन सकोगे, यह मेरी चुनौती है।
आदरणीय सुधा भार्गव जी वाकई आप ने बहुत जोरदार चुनौती दी है. बधाई आप को .
स्थिति तब बदलेगी न जब सोच बदलेगा