कविता

मोरे सजनवा !!!

घिर  आई फिर से… कारी कारी बदरिया
लेकिन तुम घर नहीं आये….मोरे सजनवा !!!
नैनन को मेरे, तुमरी  छवि हर पल नज़र आये
तेरी याद सताये , मोरा जिया जलाये !!
लेकिन तुम घर नहीं आये….मोरे सजनवा !!!

सा  नि ध पा, मा गा रे सा……..

बावरा मन ये उड़ उड़ जाये जाने कौन देश रे
गीत सावन के ये गाये तोहे लेकर मन में
रिमझिम गिरती फुहारे बस आग लगाये
तेरी याद सताये , मोरा जिया जलाये !!
लेकिन तुम घर नहीं आये….मोरे सजनवा !!!

सा  नि ध पा, मा गा रे सा……..

सांझ ये गहरी, साँसों को मोरी ; रंगाये,
तेरे दरश को तरसे है ; ये आँगन मोरा
हर कोई सजन,अपने घर लौट कर आये
तेरी याद सताये , मोरा जिया जलाये !!
लेकिन तुम घर नहीं आये….मोरे सजनवा !!!

सा  नि ध पा, मा गा रे सा……..

बिंदिया, पायल, आँचल, कंगन चूड़ी  पहनू सजना
करके सोलह श्रृंगार तोरी राह देखे ये सजनी
तोसे लगन लगा कर, रोग  दिल को लगाये
तेरी याद सताये , मोरा जिया जलाये !!
लेकिन तुम घर नहीं आये….मोरे सजनवा !!!

सा  नि ध पा, मा गा रे सा……..
बरस रही है आँखे मोरी ; संग बादलवा..
पिया तू नहीं जाने मुझ बावरी का  दुःख रे
अब के बरस,  ये राते ; नित नया जलाये
तेरी याद सताये , मोरा जिया जलाये !!
लेकिन तुम घर नहीं आये….मोरे सजनवा !!!

सा  नि ध पा, मा गा रे सा……..

आँगन खड़ी जाने कब से ; कि तोसे संग जाऊं
चुनरिया मोरी भीग जाये ; आँखों के सावन से
ओह रे पिया, काहे ये जुल्म मुझ पर तू ढाये
तेरी याद सताये , मोरा जिया जलाये !!
लेकिन तुम घर नहीं आये….मोरे सजनवा !!!

घिर  आई फिर से… कारी कारी बदरिया
लेकिन तुम घर नहीं आये….मोरे सजनवा !!!