आओ ! बाबा रामदेवजी की उपलब्धियों को देश और अपनी उपलब्धि समझें
हमारे देश के अधिकांश पढ़े लिखे और खासतौर पर वरिष्ठ लोगों की मानसिकता को लेकर एक कहानी लोकजीवन में बहुत प्रचलित है, जिसे हम गाहे बगाहे सत्य सिद्ध करने की उतावली में दिखाई देते हैं l बात थोड़ी पुरानी है, इंग्लैण्ड की महारानी के महल में विश्व के तमाम तरह के केकड़ों की प्रदर्शनी का आयोजन किया गया था l दुनियाभर के देशों के केकड़ों को बड़े – बड़े कांच के मर्तबानों में रखा गया था l सब पर ढ़क्कन अच्छे से और सावधानीपूर्वक लगाए गए थे l बड़ा अच्छा प्रयास था, किसम किसम के केकड़े थे l रंगबिरंगे केकड़ों को देखकर परमात्मा की रंगीन मिज़ाजी का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता था l
उन्हें देखकर महारानी बेहद ख़ुश हुई l प्रदर्शनी देखते – देखते, उनकी नज़र अचानक एक तुलनात्मक रूप से छोटे मर्तबान में रखे बड़े बड़े एवं ख़तरनाक दिखने वाले केकड़ों पर पड़ी l उन्होंने देखा कि उस मर्तबान पर ढ़क्कन भी नदारद है, भयभीत होकर वे वहां से तत्काल बाहर आ गई l उन्हें बेहद गुस्सा आया l
आयोजक की तत्काल पेशी हुई l उसने महारानी साहिबा को अदब के साथ बताया कि ये केकड़ें विश्वगुरुत्व से पदावनत होकर गुलामी की यात्रा कर चुके भारत के हैं l हजारों मील की यात्रा तय करने के बावज़ूद ये केकड़ें इस मर्तबान से बाहर नहीं निकल पायें हैं l ये भारत से इसीतरह यहां तक लाये गए हैं l एक दो दिन तो क्या ये ज़िन्दगी भर भी ऐसे रखे जाएँ तो भी इनके बाहर निकलने का रत्तीभर भी ख़तरा नहीं है l यदि किसी केकड़े ने ऊपर चढ़ने की कोशिश की तो दूसरे सारे के सारे केकड़ें तत्काल उसे नीचे खींचने में अपनी सारी ताक़त झोंक देंगे l
उनकी मानसिकता अधिकांश पढ़े लिखें भारतीयों जैसी ही है l किसी की भी कामयाबी उन्हें तनिक भी रास नहीं आती है I यदि अपने आसपास या क्षेत्र के किसी व्यक्ति ने ऐसे काम को साकार कर दिखाया है, जिसे वे स्वयं नहीं कर पाएं हैं (या कर पाने की कोई सम्भावना नहीं है) तो उसको आगे बढ़ते हुए देखकर अन्य सारे लोग पारस्परिक परम्परागत एवं जगजाहिर शत्रुता का परित्याग कर अनपेक्षित और असम्भव सी एकजुटता का परिचय देते हुए सामूहिक रूप से अपनी चतुरता, शातिराना प्रतिभा, छल, कपट, निन्दा, सभी तरह के बल, पहुंच यानी एप्रोच, षड्यंत्र बुद्धि आदि लगाकर उसे गिराने, बदनाम और तबाह करने में जुट जाते हैं l ख़ासतौर पर अपने से किसी भी मामले में कमतर समझें (उनकी अपनी दृष्टि में) जाने वाले व्यक्ति की सफलता उन्हें बेचैन कर डालती है, इस हेतु वे सब अपनी चिकित्सा विज्ञान के अनुसार बेहद अनिवार्य नवजीवनदायिनी नीन्द का भी त्याग कर डालते हैं l कई बार तो निकट के परिजन भी ऐसा कर बैठते हैं I
वर्तमान सन्दर्भ में श्री नरेन्द्र मोदीजी और बाबा रामदेव के साथ कुछ कुछ ऐसा ही हो रहा है I रेल्वे स्टेशन पर चाय बेचने वाले और बाद में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक प्रचारक श्री नरेन्द्र मोदीजी की सफलता और वैश्विक लोकप्रियता ने सुनिश्चित रूप से नए विश्व कीर्तिमान रच डालें हैं I
अस्तु, इस आलेख या विचार का केन्द्र बिन्दु बाबा रामदेव हैं अत: उन्हीं की बात करें तो उन्होंने जो कीर्तिमान रचे हैं, वे भी हतप्रभ कर देने वाले हैं I एक अकेले बन्दे ने सायकल पर च्यवन प्राश बेचते बेचते स्वदेशी व्यापार का जो साम्राज्य स्थापित किया है वह किसी रीगन, धीरुभाई अम्बानी, या बिल गेट्स से कम नहीं है I मेरे अपने निजी मत में वे इस दृष्टि से विश्व के किसी भी व्यक्ति से सैकड़ों गुना श्रेष्ठ हैं, क्योंकि उन्होंने विश्व की अनेक बेहद शक्तिशाली मल्टी नेशनल कम्पनियों की कुटनीतिक व्यापारिक बुद्धि, साम, दाम, दण्ड और भेद आधारित तथा आकर्षक-आक्रामक विज्ञापनों से पोषित और सेलिब्रिटी आधारित सुस्थापित वृहद साम्राज्य के समक्ष अपनी स्वदेशी सोच के बलबूते पर विविध आयामी घरेलू दैनन्दिन उपयोग की वस्तुओं का गुणवत्ता आधारित, निरापद, ठेठ देसी और प्राकृतिक सूत्रों (फार्मूलों) के आधार पर निर्माण कर बहुत बड़ा और सफल बाजार स्थापित किया है I लाखों साधारण नागरिकों को व्यापारी बना दिया I आयुर्वेदिक दवाओं का निर्माण और हरिद्वार में उनके चिकित्सालय की सफलता को भी हम अनदेखा नहीं कर सकते हैं I
भारतीय योग विज्ञान को वैश्विक विधा में रूपान्तरित कर विश्व योग दिवस तक ले जाने में बाबा रामदेव की भूमिका को भले ही कोई नकारें परन्तु उनकी महती भूमिका सुनिश्चित रूप से है ही I दुखद है कि हम बाबा रामदेव की अनूठी स्वदेश भक्ति, राष्ट्रनिष्ठा, ध्येयनिष्ठा, संस्कृति के प्रति अनुपम प्रेम, जिजीविषा आदि को नजरअंदाज कर उनके साम्राज्य को ध्वस्त करने की कोशिशों में लगे हुए हैं या उनकी सफलता को नकारने में अपनी सारी ताकत झोंक रहे हैं I उनके विराट आकार ले चुके व्यावसायिक साम्राज्य को शक और आलोचना की निगाह देखते हैं I एक बात का जिक्र प्रासंगिक होगा कि मेरे कई उच्च शिक्षित मित्र और रिश्तेदार, जो पहले मल्टी नेशनल कम्पनियों के उत्पादों का उपयोग करने में विश्वास करते थे, हमारे कहने पर उन्होंने बाबाजी के उत्पादों का दैनिक जीवन में उपयोग किया तो वे बेहद प्रभावित हुए और आज वे और उनकी मित्रमण्डली बाबाजी के अनेक उत्पादों को अपना चुके हैं I
अस्तु, यह पुण्यभूमि है, परमात्मा की असीम अनुकम्पा से बाबाजी आम जनता के विश्वास तथा सहयोग से सफलता के नए कीर्तिमान स्थापित करते ही जाएंगे, इसमें संशय नहीं है I उनके वृहद, सतत विकासशील और सफल देसी साम्राज्य से यह ध्वनित होता है कि भारत के नागरिक स्वदेशी को तेजी से अपना रहे हैं और आम देसी जनता ने उन्हें भारतरत्न या नोबेल सम्मान से अलंकृत कर दिया है I
अब समय आ गया है कि हम हजारों वर्षों की गुलामीजनित फूट डालो और फूंक डालो मानसिकता से मुक्ति पाकर देसी प्रतिभाओं की सफलता को हमारी अपनी सफलता मानते हुए खुले दिल से सराहें और देसी सफलता का वैश्विक जश्न आयोजित करें I ऐसा किया गया तो यकीन मानिए भारत के दूरदराज के गांवों की प्रतिभाएं अविश्वसनीय आविष्कार करने के पराक्रम दिखाने लगेंगी I
— डॉ. मनोहर भण्डारी
लेख बहुत अच्छा लगा। साधुवाद इसके लिए।