ग़ज़ल : जिंदगी लय ताल बनकर रह गयी…
जिंदगी लय ताल बनकर रह गयी
बंदगी मन चाल बनके कह गयी
सोच अब कितना बदलता जा रहा
आदतें रस जाल जैसी लह गयी
भावना उनका समुंदर बन गया
ज्वार -भाटे की तरह लह बह गयी
सादगी तन भूल भौरें ने कहा
फूल चुन कलियाँ अकेली रह गयी
सोचता मन ‘राज’ कैसी ए वफ़ा
माँग माली देख कलियाँ कह गयी
रात तेरी मीत मनसे अलविदा
राजसी मन आज कैसे गह गयी
चाह उनकी साज जबसे बन गये
नित तराना राग बन कर बह गयी
— राजकिशोर मिश्र ‘राज’