अनगढ़
हूँ अभी अनगढ़ सँवर जाऊँगी मैं ,
देखना इक दिन निखर आऊँगी मैं .
वक्त मुझपे ढा ले चाहे जो सितम ,
और भी ज्यादा चमक जाऊँगी मैं .
है यकीन खुद पे छू लूँगी इक दिन आसमां ,
पर धरा पर पाँव रखने फिर चली आऊँगी मैं .
रास्ता रोकेंगे क्या ये पहाड़ झरने और नदी ,
इन हवाओं के रुखों को मोड़ दिखलाऊंगी मैं .
कम न होगा हौसला बदले पवन भी रास्ता ,
हाँ जो ठाना लक्ष्य है इक दिन उसे पाऊँगी मैं .
मौन में मेरे तुम्हें बतलाऊँ मैं क्या पल रहा ,
तार दिल के छेड़कर हाँ धुन नयी गाऊँगी मैं.
क्यूंकि हूँ अभी अनगढ़ सँवर जाऊँगी मैं ……..
— पूनम पाठक
वाह सुन्दर भाव बधाई हो।
वाह सुन्दर भाव बधाई हो।
बहुत शुक्रिया रमेश कुमार जी..