कविता

अनगढ़

हूँ अभी अनगढ़ सँवर जाऊँगी मैं ,
देखना इक दिन निखर आऊँगी मैं .
वक्त मुझपे ढा ले चाहे जो सितम ,
और भी ज्यादा चमक जाऊँगी मैं .
है यकीन खुद पे छू लूँगी इक दिन आसमां ,
पर धरा पर पाँव रखने फिर चली आऊँगी मैं .
रास्ता रोकेंगे क्या ये पहाड़ झरने और नदी ,
इन हवाओं के रुखों को मोड़ दिखलाऊंगी मैं .
कम न होगा हौसला बदले पवन भी रास्ता ,
हाँ जो ठाना लक्ष्य है इक दिन उसे पाऊँगी मैं .
मौन में मेरे तुम्हें बतलाऊँ मैं क्या पल रहा ,
तार दिल के छेड़कर हाँ धुन नयी गाऊँगी मैं.
क्यूंकि हूँ अभी अनगढ़ सँवर जाऊँगी मैं ……..

पूनम पाठक

पूनम पाठक

मैं पूनम पाठक एक हाउस वाइफ अपने पति व् दो बेटियों के साथ इंदौर में रहती हूँ | मेरा जन्मस्थान लखनऊ है , परन्तु शिक्षा दीक्षा यही इंदौर में हुई है | देवी अहिल्या यूनिवर्सिटी से मैंने " मास्टर ऑफ़ कॉमर्स " ( स्नातकोत्तर ) की डिग्री प्राप्त की है | इंदौर में ही एकाउंट्स ऑफिसर के जॉब में थी | परन्तु शादी के बाद बच्चों को उचित परवरिश व् सही मार्गदर्शन देने के लिए जॉब छोड़ दी थी| अब जबकि बच्चे कुछ बड़े हो गए हैं तो अपने पुराने शौक लेखन से फिर दोस्ती कर ली है | मैं कविता , कहानी , हास्य व्यंग्य आदि विधाओं में लिखती हूँ |

3 thoughts on “अनगढ़

Comments are closed.