ग़ज़ल
गमगीन ये वातावरण है, इक तेरे जाने के बाद।
आँखों में भी जागरण है, इक तेरे जाने के बाद।
ले गए तुम साथ अपने आस भी, विश्वास भी,
श्वास लेना भी कठिन है, इक तेरे जाने के बाद।
गीत सब रह गए अधूरे, साज़ भी खामोश हैं,
आवाज़ में कैसा रूदन है, इक तेरे जाने के बाद।
कल तलक जो लोग मुझको चाहते थे टूटकर,
आज अपने में मगन हैं, इक तेरे जाने के बाद।
छाया सा था साथ तेरा, तपते रेगिस्तान में,
अब जुदाई की तपन है, इक तेरे जाने के बाद।
साँप यादों के है डसते, दिल को अब चारों पहर,
सीने में कितनी घुटन है, इक तेरे जाने के बाद।
सिसकियाँ लेती है रात और, चाँद भी धुंधला सा है,
चमक तारों की मलिन है, इक तेरे जाने के बाद।
कोई गिला नहीं जिंदगी से, था तेरे आने से पहले,
शिकवा सा लगता जीवन है, इक तेरे जाने के बाद।
— भरत मल्होत्रा
ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी .