माचिश की तीलियाँ
जल- जलके माचिश की तीलियाँ
कर देतीं रौशन घर, मंदिर ‘चौबारे
आबाद कर देतीं घर घर का चूल्हा
वे तो मनाती हैं सबकी खैर
थामे कोई अपना या गैर ।।
जल- जलके करतीं रौशन चराग
बुझाती रहती पेट की आग
सुलझाती रहीं रोजी -रोटी के मसले
लहलहाती रहीं कुनबों की फसलें
बशर्ते जबतक रहती वे सही हाथों में ।।
— आरती वर्मा ‘नीलू’