ग़ज़ल : बेगाना ….
अपने ही घर में बेगाना ठहरा दिया
दिल पर ये लगा कैसा पहरा दिया ||
जिन्हें चाहा है जान से भी ज्यादा
उन्होंने ने ही जख्म ये गहरा दिया ||
आँचल से ढलका था दुपट्टा उनका
हवा में बड़े ही प्यार से लहरा दिया ||
हसीं वादियों में जा खाई कसमे यूँ
मानो प्यार का परचम फहरा दिया ||
“दिनेश “