बे वज़ा की भाग दौड हो रही है जिन्दगी
बे वज़ा की भाग दौड हो रही है जिन्दगी।
आगे निकलने की होड़ हो रही है जिन्दगी॥
अंतहीन चाहतों के अंतहीन सिलसिले।
दौलतो की ख्वाहिशों के ये मलीन सिलसिले।
ख्वाहिशों का कितना बोझ ढो रही है जिन्दगी….
आगे निकलने की होड़ हो रही है जिन्दगी…
रिश्ते नाते कस्में वादे सब के सब हवा हुए
दोस्ती के किस्से प्रेम गीत जानें क्या हुए
अब तो सिर्फ अश्को में डुबो रही है जिन्दगी….
आगे निकलने की होड़ हो रही है जिन्दगी….
लगती है हंसी पराई हर खुशी उधार सी।
मानसिकता हो गई अपंग सी बीमार सी॥
दिखते नही आंसू मगर रो रही है जिन्दगी…..
आगे निकलने की होड़ हो रही है जिन्दगी….
असली खुशियां छोड़ के नकली तलाशने लगे।
जिन्दगी को खुद ही गम के जाल फांसने लगे॥
जिन्दगी का अब वज़ूद खो रही है ज़िन्दगी….
आगे निकलने की होड़ हो रही है जिन्दगी…
सतीश बंसल
बढ़िया गीत !
बहुत आभार विजय जी..
जिन्दगी का अब वज़ूद खो रही है ज़िन्दगी….
आगे निकलने की होड़ हो रही है जिन्दगी… सभी दौड़ रहे हैं , साँसें फूल रही हैं ,मरने की फुर्सत नहीं !
जी, ठीक कहा, आद. गुरमेल जी..
वाह !!!
शुकगरिया रमेश जी..