गीत/नवगीत

बे वज़ा की भाग दौड हो रही है जिन्दगी

बे वज़ा की भाग दौड हो रही है जिन्दगी।
आगे निकलने की होड़ हो रही है जिन्दगी॥

अंतहीन चाहतों के अंतहीन सिलसिले।
दौलतो की ख्वाहिशों के ये मलीन सिलसिले।
ख्वाहिशों का कितना बोझ ढो रही है जिन्दगी….
आगे निकलने की होड़ हो रही है जिन्दगी…

रिश्ते नाते कस्में वादे सब के सब हवा हुए
दोस्ती के किस्से प्रेम गीत जानें क्या हुए
अब तो सिर्फ अश्को में डुबो रही है जिन्दगी….
आगे निकलने की होड़ हो रही है जिन्दगी….

लगती है हंसी पराई हर खुशी उधार सी।
मानसिकता हो गई अपंग सी बीमार सी॥
दिखते नही आंसू मगर रो रही है जिन्दगी…..
आगे निकलने की होड़ हो रही है जिन्दगी….

असली खुशियां छोड़ के नकली तलाशने लगे।
जिन्दगी को खुद ही गम के जाल फांसने लगे॥
जिन्दगी का अब वज़ूद खो रही है ज़िन्दगी….
आगे निकलने की होड़ हो रही है जिन्दगी…

सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.

6 thoughts on “बे वज़ा की भाग दौड हो रही है जिन्दगी

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया गीत !

    • सतीश बंसल

      बहुत आभार विजय जी..

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    जिन्दगी का अब वज़ूद खो रही है ज़िन्दगी….

    आगे निकलने की होड़ हो रही है जिन्दगी… सभी दौड़ रहे हैं , साँसें फूल रही हैं ,मरने की फुर्सत नहीं !

    • सतीश बंसल

      जी, ठीक कहा, आद. गुरमेल जी..

    • सतीश बंसल

      शुकगरिया रमेश जी..

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