राजनीति

स्वतंत्रता

स्वतंत्रता हमारा मूलभूत अधिकार है। स्वतंत्रता के कई रूप हैं जिनमें से एक रूप है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता। दुर्भाग्यवश हमारे देश में स्वतंत्रता स्वछंदता का रूप धारण करती जा रही है। स्वतंत्रता जब गैरजिम्मेदार हो जाती है तो स्वछंदता में परिवर्तित हो जाती है। पिछले दिनों देश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय जे एन यू में जो कुछ हुआ वो स्तब्ध कर देने वाला था। अब तक सामान्य सोच ये थी कि विद्या के अभाव से देश में कट्टरपंथियों को फलने-फूलने का अवसर प्राप्त हो रहा है। जैसे-जैसे विद्या का प्रसार होता जाएगा लोग जागरूक होते जाएंगे और देश में सद्भावना बढ़ेगी। लेकिन अगर देश के सबसे प्रतिष्ठित शिक्षा संस्थानों में से एक में अगर देश विरोधी नारे लगेंगे एवं देशद्रोहियों का समर्थन होने लगेगा तो इसका अर्थ ये है कि इस शिक्षा पद्धति पर एक बार फिर विचार करने की आवश्यकता आन पड़ी है।

विचारणीय बात यह है कि क्या ये वही युवा पीढ़ी है जिसके दम पर हम संसार में सबसे युवा देश होने का दावा करते हैं? क्या ये वही युवा पीढ़ी है जिसके हाथों में हम इस देश का भविष्य देखते हैं? क्या ये वही युवा पीढ़ी है जिसके पालन पोषण में हमने अपना वर्तमान दांव पर लगा दिया है? क्या ये वही युवा पीढ़ी है जिसकी शिक्षा के लिए सरकार अरबों रूपए का अनुदान दे रही है जोकि इस देश के करोड़ों करदाताओं के खून पसीने की कमाई है? अगर यही हमारी युवा पीढ़ी है तो हमारे देश का भविष्य घोर अंधकारमय है। अगर यही हमारी युवा पीढ़ी है तो हजारों वर्ष पुरानी हमारी सभ्यता नष्ट होने के कगार पर है। जो भारत को बर्बाद करना चाहते हैं उन्हें ये समझ नहीं आता कि जिस डाल पर वो बैठे हैं उसे ही काटने का क्या परिणाम होता है? उन्हें लगता है वो अपने ही घर में आग लगाकर सुरक्षित रह सकेंगे? उन्हें अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि अगर भारत बर्बाद होता है तो कोई भारतवासी आबाद नहीं रह सकता एवं अपने जिन विदेशी या राजनीतिक आकाओं के इशारों पर वो ये सब कर रहे हैं वो काम पूरा होते ही उन्हें दूध में से मक्खी की भाँति निकाल कर फेंक देंगे।

अब समय आ गया है कि रंग, जाति, धर्म से ऊपर उठा जाए। इस देश में सब दो ही जातियां हों, दो ही धर्म हों देशभक्ति एवं देशद्रोह। कौन देश के साथ है और कौन देश के विरूद्ध। इसी आधार पर अपने और परायों का निर्णय होना चाहिए। अगर कोई कहता है कि हिंदुस्तान की बर्बादी तक हम संघर्ष करेंगे या देश की संसद पर हमला करने वालों को अपना आदर्श बताता है तो वो इस देश के नागरिकों को कतई बर्दाश्त नहीं होगा। दो साल पहले देश के सर्वोच्च न्यायालय ने जिसे दोषी करार देकर फांसी दे दी उसे शहीद बताना देश के चेहरे पर तमाचा है। जो भी देशविरोधी ताकतों का समर्थन करेगा वो किसी भी धर्म, किसी भी जाति से संबंधित क्यों ना हो उसका बहिष्कार किया जाना चाहिए और उसे सख्त से सख्त दंड देकर अन्यों के सम्मुख उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए।

शिक्षा में बढ़ती राजनीति का दुष्परिणाम अपनी पूरी भयावहता के साथ इस समय हमारे सम्मुख प्रस्तुत है। दुख की बात ये है कि जिम्मेदार पदों पर बैठे लोग अभी भी इस पूरे घटनाक्रम से कुछ बोध लेते हुए नहीं दिखते। विभिन्न दलों के राजनेता समस्या के समाधान की जगह अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने में ज्यादा उत्सुक दिखाई पड़ रहे हैं। युवा पीढ़ी की ये दिशाहीनता हमारे देश को गर्त में ले जा रही है परंतु इस बात की चिंता किसी को नहीं है। सबको चिंता बस यही है कि किसी तरह सत्ता का सुख भोगने को मिल जाए।

हमें अपने संकीर्ण स्वार्थों से ऊपर उठकर देश का हित सोचना होगा। सही को सही और गलत को गलत कहने की हिम्मत दिखानी होगी। जो गद्दार है, जो देश के प्रति वफादार नहीं उसका बहिष्कार होना चाहिए। चाहे वो हमारे धर्म का हो, चाहे वो हमारी जाति का हो, चाहे वो हमारे घर का ही क्यों ना हो। आइए हम सब मिलकर देश के प्रति निष्ठा की शपथ लें और ये सुनिश्चित करें कि जो भी देश का विरोधी हो उसे कहीं से किसी भी प्रकार का सहयोग ना मिले।

— भरत मल्होत्रा

*भरत मल्होत्रा

जन्म 17 अगस्त 1970 शिक्षा स्नातक, पेशे से व्यावसायी, मूल रूप से अमृतसर, पंजाब निवासी और वर्तमान में माया नगरी मुम्बई में निवास, कृति- ‘पहले ही चर्चे हैं जमाने में’ (पहला स्वतंत्र संग्रह), विविध- देश व विदेश (कनाडा) के प्रतिष्ठित समाचार पत्र, पत्रिकाओं व कुछ साझा संग्रहों में रचनायें प्रकाशित, मुख्यतः गजल लेखन में रुचि के साथ सोशल मीडिया पर भी सक्रिय, सम्पर्क- डी-702, वृन्दावन बिल्डिंग, पवार पब्लिक स्कूल के पास, पिंसुर जिमखाना, कांदिवली (वेस्ट) मुम्बई-400067 मो. 9820145107 ईमेल- [email protected]

3 thoughts on “स्वतंत्रता

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छा लेख ! स्वतंत्रता का स्वच्छंदता बन जाना लोकतंत्र के लिए घातक होता है।

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छा लेख ! स्वतंत्रता का स्वच्छंदता बन जाना लोकतंत्र के लिए घातक होता है।

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    क्या ये वही युवा पीढ़ी है जिसके हाथों में हम इस देश का भविष्य देखते हैं? क्या ये वही युवा पीढ़ी है जिसके पालन पोषण में हमने अपना वर्तमान दांव पर लगा दिया है? क्या ये वही युवा पीढ़ी है जिसकी शिक्षा के लिए सरकार अरबों रूपए का अनुदान दे रही है जोकि इस देश के करोड़ों करदाताओं के खून पसीने की कमाई है? अगर यही हमारी युवा पीढ़ी है तो हमारे देश का भविष्य घोर अंधकारमय है. आप ने सही कहा भाई साहब .

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