ग़ज़ल
झुकी उनकी अक्सर नजर देखते हैं
मुहब्बत का उन पर असर देखते हैं
सभी ख्वाहिशें मेरी पूरी हुई हैं
दुआओं में माँ की असर देखते हैं
मिरे जह्न पर छा गए हो कुछ ऐसे
तुम्हीं हो नज़र में जिधर देखते हैं
नहीं प्यार गाँवों की मिट्टी से उनको
युवा ख्वाब में बस शहर देखते हैं
मिरा बचपना लौट आता है यारो
कभी कागज़ी नाव गर देखते हैं
— धर्म पाण्डेय
सुंदर ग़ज़ल !
ग़ज़ल अच्छी लगी .