मुक्तक/दोहा

तेरे बिस्तर की हर सरवट हकीकत खोल जाती है..

तेरे बिस्तर की हर सरवट हकीकत खोल जाती है
बदल कर कर करवटें आंखों में सारी रात जाती है।
तू ये माने या ना माने तेरी मरज़ी तेरी मरजी
मगर ये है हकीकत तुमको मेरी याद आती है॥

मोहब्बत का हर एक लम्हा ज़हन में आता तो होगा।
तड़पता हूं मैं जैसे तुलको भी तडपाता तो होगा॥
उतरती होगी आंखों मे हर एक तस्चीर उल्फ़त की
ज़माना वो मोहब्बत का तुम्हें तडपाता तप होगा॥

धडकता है तेरा दिल अब भी मेरा नाम आते ही
तडपता होगा दिल अब भी सिंदूरी शाम आते ही।
ना मैं भूला ना तुम भूले हकीकत है यही सपनी
मेरी धडकन भी बढ जाती है तेरा नाम आते ही॥

अगर तुम भूल जाते तो ज़िगर में पीर ना रखते
सिरहाने पर छुपाकर तुम मेरी तस्वीर ना रखते।
भुला पाते अगर एक दूसरे को दिल से हम तुम तो
ज़िगर में आग आंखों मे ये बहता नीर ना रखते॥

बा तेरे बस में है कुछ अौर ना कुछ मेरे बस में है
मोहब्बत की अलग दुनिया अलग कयछ इसकी रश्में है।
लिखा है नियति ने जो वही हर हाल में होगा
ये कुदरत की मरजी पर सभी कुछ उसके बस में है॥

तुम्हे हम जान से ज्तादा अभी भी प्यार करते हैं
मोहब्बत है हमे तुमसे हां ये इकरार करते है।
तुम्हें महसूस करता हूं पनाहो में इन बाहों में
तेरे साये को अपने साथ हम महसूस करते है॥

ना तुम बदले ना मैं बदला, तो फिर ये दूरिया क्यूं है
दबाकर ख्वाहिशे रखने की ये मज़बूरियां क्यूं है।
अगर दिल एक है धडकन धडकती क्यूं नही संग संग
जलन सांसो में क्यू चेहरों पे ये बे नूरियां क्यूं है॥

सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.