सत्ता का ऐसा दुरुपयोग !
इशरत जहाँ मामले में सत्ता के दुरुपयोग के जो प्रमाण आ रहे हैं, वे अत्यन्त गंभीर और चिन्ताजनक हैं। अपने राजनीतिक विरोधियों को नीचा दिखाने के लिए क्या राष्ट्रीय सुरक्षा से भी समझौता किया जा सकता है? भारत की सुरक्षा और लोकतंत्र का भविष्य सवाल के घेरे में है। देश का गृह मंत्री अपने हाथों से फ़र्ज़ी हलफ़नामा तैयार करे और वह भी अपने विदेशी आका के इशारे पर ! विश्वास नहीं होता है कि ऐसा हुआ होगा, लेकिन हेडली के खुलासे और सीबीआई तथा रा के अधिकारियों के वक्तव्यों के बाद कोई संदेह नहीं रह जाता।
इशरत जहाँ मुंबई के गुरुनानक खालसा कालेज में विज्ञान संकाय की छात्रा थी। वह मध्यम श्रेणी के परिवार से ताल्लुक रखती थी उसकी माँ मुंबई में ही वाशी की एक दवा-दूकान में काम करती थी। १५ जून, २००४ को अहमदाबाद में उसका और उसके तीन साथियों का एनकाउन्टर किया गया। सुपुष्ट खुफ़िया रिपोर्ट के अनुसार इशरत जहाँ और उसके तीन पुरुष साथी – ज़ावेद, अज़मद अली राणा और ज़ीशान जौहर लश्करे तोइबा के खुंखार आतंकवादी थे। वे गुजरात के तात्कालीन मुख्य मंत्री नरेन्द्र मोदी की हत्या के लिए अहमदाबाद आए थे। गुजरात पुलिस को यह पुख्ता सूचना केन्द्र सरकार की गुप्तचर संस्था रा ने दी थी। गुजरात पुलिस ने उस सूचना के आधार पर ही कार्यवाही की थी। इस मामले में फाइल पर दर्ज़ नोटिंग के अनुसार पहला हलफ़नामा महाराष्ट्र और गुजरात पुलिस के अलावा केन्द्रीय गुप्तचर विभाग से मिले इनपुट के आधार पर दाखिल किया गया था। उस समय शिवराज पाटिल केन्द्रीय गृह मंत्री थे। इस हलफ़नामे में मुंबई बाहरी की रहनेवाली इशरत जहाँ को आतंकवादी बताया गया था तथा उसका संबन्ध लश्करे तोइबा से होना कहा गया था। बाद में नरेन्द्र मोदी की देश भर में बढ़ती लोकप्रियता से परेशान कांग्रेस नेतृत्व को यह एन्काउन्टर एक राजनीतिक उपकरण नज़र आने लगा। कुछ मानवाधिकार संगठन इसे फ़र्ज़ी एन्काउन्टर घोषित कर चुके थे। कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को ऐसा लगा कि इस मामले में मोदी को लपेटकर चुनावों में वांछित लाभ प्राप्त किया जा सकता है। मोदी के राजनीतिक जीवन के खात्मे के लिए बाकायदा योजना बनाई गई और अग्रिम कार्यवाही की जिम्मेदारी तात्कालीन गृह मंत्री पी. चिदंबरम को सौंपी गई, जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया। उन्होंने दूसरा हलफ़नामा स्वयं अपने हाथ से तैयार किया जिसमें पहले की सभी रिपोर्टों को दरकिनार कर दिया गया। यही नहीं, यह प्रमाण पत्र भी दिया गया कि इशरत जहाँ आतंकवादी नहीं थी। हलफ़नामा बदलने के दौरान चिदंबरम ने अपने किसी अधिकारी को भी भरोसे में नहीं लिया। चूंकि वे सुप्रीम कोर्ट के वकील हैं, इसलिए हलफ़नामा तैयार करने में उन्हें कोई दिक्कत भी नहीं हुई। लश्करे तोइबा की वेबसाइट, अभी-अभी डेविड हेडली के बयान और गुजरात हाई कोर्ट में दाखिल केन्द्र सरकार के पहले हलफ़नामे से यह स्पष्ट हो गया है कि इशरत जहाँ खुंखार आतंकवादी थी। पूर्व गृह सचिव जी.के. पिल्लै ने यह सनसनीखेज खुलासा किया है कि चिदंबरम द्वारा हलफ़नामे में बदलाव का फ़ैसला राजनीतिक स्तर पर लिया गया था। इसमें गृह मंत्री, प्रधान मंत्री और यू.पीए. की अध्यक्षा प्रमुख रूप से शामिल थीं।
पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस वी.एन. खरे ने इस पूरी घटना पर अपनी चिन्ता ज़ाहिर की है। उन्होंने वक्तव्य दिया है कि एक संयुक्त सचिव के अनुसार इशरत जहाँ मामले में हलफ़नामा बदले जाने के क्रम में मंत्रालय के स्तर पर हुए घालमेल की सरकार जांच करा सकती है। अलग से जांच-आयोग का भी गठन किया जा सकता है और बदले गए हलफ़नामे की स्थिति के बारे में भी प्रार्थना पत्र दे सकती है। दूसरा विकल्प यह है कि मामला अदालत में विचाराधीन है और इसपर सरकार अदालत में यह जानकारी रखकर आगे का दिशा निर्देश प्राप्त कर सकती है।
केन्द्र सरकार कोई जांच कराएगी या न्यायालय के फ़ैसले का इंतज़ार करेगी, यह भविष्य के गर्भ में है। परन्तु तात्कालीन केन्द्र सरकार, जो देश की सुरक्षा के लिए पूरी तरह जिम्मेदार है, द्वारा सिर्फ़ एक राजनीतिक विरोधी के राजनीतिक सफ़र को खत्म करने के लिए सुरक्षा एजेन्सियों और गृह मंत्रालय का दुरुपयोग गंभीर चिन्ता का विषय है। हाल में प्रकाश में आईं जे.एन.यू. में राष्ट्रविरोधी गतिविधियों से कम खतरनाक नहीं हैं तात्कालीन पीएम, एचएम और यूपीए अध्यक्ष की गतिविधियां। जांच भी होनी चाहिए और सज़ा भी मिलनी चाहिए।
बहुत अच्छा लेख ! जो पार्टी तुच्छ राजनैतिक लाभ के लिए आतंकवादियों को निर्दोष बता सकती है और अपने राजनैतिक विरोधियों की चरित्र हत्या कर सकती है, उसका हमारे देश की राजनीति में कोई स्थान नहीं होना चाहिए। अब कांग्रेस और उसके इटैलियन नेतृत्व को दंडित करने का समय आ गया है।