बहुत सह ली तेरी गद्दारी
बहुत सह ली तेरी गद्दारी ,
अब नही सह पाऊँगी|
ऐसे देश द्रोहियों को ,
देश से निकाल फेकूँगी|
जगह-जगह दंगा फैलाकर,
करते हो अपनी मनमानी|
दहशत मे डाल गॉव घर को,
बनते हो हिन्दुस्तानी|
जिसने तुम्हे पाला पोसा,
आज उसे ही बदनाम करते हो |
भारती मॉ के श्वेत ऑचल में,
खुनी दाग लगाते हो|
नमक खाते हो देश का
गुणगान करते हो विदेश का|
कुछ तो शर्म करों अब ,
लाज रखो अपनी मॉ की कोख की|
निवेदिता चतुर्वेदी
बढ़िया रचना !
धन्यबाद सर
आज के भारत के कुछ लोग !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
सार्थक लेखन
धन्यबाद