सोन मछरिया
ये क्या तरल है जो
मेरे फेफड़ों के अंदर-बाहर बना हरकारा है
तुम्हारी चाह की साँसे हैं
फेफड़ो में धधकती दुबारा तिबारा चौबारा है
तालाब में भी
कुछ न कुछ जल खारा है
तालाब में मिश्रित खारापन
मेरे आसुंओं की जलधारा है
तुम्हारा मिलना है
जैसे सोन मछरिया से समन्दर की धारा है
कभी नहीं मिलते जो
जिनका न मिलना ही जीवन सारा है
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धन्यवाद
वाह वाह ! बहुत खूब !!