कविता

कैसे समझाऊं उन्हें

कैसे समझाऊं उन्हें
कि वो मेरी बंजर जमीन पे पक्का रोड़ हैं
मेरे दिल की हार्ड डिस्क पे
वो हो चुके अपलोड हैं
कोई ऐसी बात ही नही उनकी
जो अपने माइंड से डिलीट कर सकूँ
क्योंकि मेरे कंप्यूटर पे
डिलीट नही सिर्फ ट्रैश मोड है
कैसे समझाऊं उन्हें
कि वो मेरी बंजर जमीन पे पक्का रोड़ हैं
होंगे दुनिया में हज़ारों लोग
जो करना चाहते हैं हमसे जी भरके बातें
पर उनके जैसा प्यार कोई नही दे सकता
भावनाओं के संसार में मोस्टली फ्रॉड हैं
24 घंटे सिर्फ और सिर्फ
उनकी की बाते होती अब डाउनलोड हैं
मेरी तो धड़कन भी वही, और जान भी
मुझे तो दीखता बस एक ही चेहरा है
जहां लाखों और करोरों का क्राउड है
मेरे दिल की हार्ड डिस्क पे
वो हो चुके अपलोड हैं।।

महेश कुमार माटा

नाम: महेश कुमार माटा निवास : RZ 48 SOUTH EXT PART 3, UTTAM NAGAR WEST, NEW DELHI 110059 कार्यालय:- Delhi District Court, Posted as "Judicial Assistant". मोबाइल: 09711782028 इ मेल :- [email protected]

2 thoughts on “कैसे समझाऊं उन्हें

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह वाह मज़ेदार कविता !

    • महेश कुमार माटा

      सादर आभार

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