कविता : जीने का ढंग
क्यों छोड़ दें हम अपने जीने का अंदाज ।
क्या है हमारे पास इस अंदाज के सिवा।
क्यों छोड़ दें हम अपना निर्भयता का अहसास ।
क्या है हमारे पास इस निडरता के सिवा ।
क्यों छोड़ दें हम हर वक्त मुस्कुराना ।
क्या है हमारे पास इस मुस्कुराहट के सिवा ।
क्यों छोड़ दें हम जीना ये अल्हड़ सा जीवन ।
क्या है हमारे पास इस मस्ती के सिवा ।
“सरू” जीवन ये ही है जी लें हर पल को हम।
क्या है हमारे पास इस वक्त के सिवा।
— स्वाति “सरू” जैसलमेरिया
वाह !