गीतिका : अश्क
कुछ अश्क छिपा रखे थे
हमने अपने दामन में ।
हमारे अपनों ने उनको
महफिले आम कर दिया ।
जिन्दगी खूबसूरत थी हमारी भी
न गम का नाम भी था कोई
जो ये नजरें मिली तुझसे
दिल तेरे नाम कर दिया
रूतबा था हमारा भी कोई
इस जालिम जमाने में ।
हमारे दिल के टुकड़े ने
हमें बदनाम कर दिया ।
दुआ लगी नहीं हमको ।
जो तूने बद्दुआ भी दी
तिलिस्म का काम कर दिया ।
जो हम बैठे हैं महफिल में
फिर भी तन्हाई लगती है ।
तेरी यादों ने कुछ यू घेरा
सुबह को शाम कर दिया ।
तूने देखा नहीं पलटकर
हम भी थे तेरी राहो में ।
तेरी एक बेरूखी ने हमें
तुझपे कत्लेआम कर दिया
— अनुपमा दीक्षित “मयंक”
बहुत खूब !