ग़ज़ल
अपना दामन जब सी लेंगे कल को हम,
तेरे आँसू भी पोछेंगे कल को हम।
माज़ी से कुछ पूछेंगे, कुछ सोचेंगे,
वाजिब पाया तो दिल देंगे कल को हम।
पीछे रह जाते हैं जो यह कहते हैं,
कल के बारे में सोचेंगे कल को हम।
साक़ी, कल के इम्काँ पर खुश होने दे,
कल की शिद्दत पर रो लेंगे कल को हम।
कल किसने देखा है, कब आता है कल,
मुझसे कहते हैं, “आएँगे कल को हम”।
पहले अपने कल को तो गढ़ लेने दो,
फुरसत पायी तो बदलेंगे कल को हम।
…….’होश’
साक़ी, कल के इम्काँ पर खुश होने दे,
कल की शिद्दत पर रो लेंगे कल को हम। वाह वाह ,मनोज जी ,क्या बात है .
शुक्रिया