नभाटा ब्लाॅग पर मेरे दो वर्ष-2
मैंने अपना पहली पोस्ट 4 जनवरी 2012 को ‘श्रीगणेशाय नमः’ शीर्षक से लिखी, जो एक भूमिका के रूप में थी। नभाटा में तीन दिनों में एक पोस्ट लिखने की अनुमति है, हालांकि चालू विषयों पर यह प्रतिबंध लागू नहीं होता। इसलिए मैं प्रायः तीन-चार दिनों में ही एक पोस्ट लिखता था और उसे ब्लाॅग पर डाल देता था।
मेरी अगली पोस्ट थी- ‘मूर्खात्मा गाँधी और पोंगा पंडित नेहरू’।
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/…/%E0%A4%A…
शीर्षक से स्पष्ट है कि इसमें गाँधी और नेहरू के हिन्दुत्व विरोधी और मुस्लिम परस्त कार्यों और विचारों की आलोचना की गयी थी। इसमें मैंने यह भी स्पष्ट कर दिया था कि मैं भी पहले गांधी का भक्त था, लेकिन जैसे जैसे मुझे गांधी के बारे में अधिक से अधिक जानकारी मिली, वैसे वैसे उनके प्रति मेरे विचार बदलते गये।
इस पोस्ट पर मुझे अपने समर्थन में कई टिप्पणियां मिलीं और केवल एक व्यक्ति ने मेरे विचारों का विरोध किया। इस प्रतिक्रिया से मेरा हौसला बढ़ा।
सम्पादक मंडल की पहली आपत्ति
मेरा अगला लेख था ‘इस्लाम से बेखबर गाँधी’
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/…/%E0%A4%8…
इसमें मैंने बताया था कि गांधी को इस्लाम की पूरी और सही जानकारी नहीं थी नहीं तो उनके विचार कुछ अलग होते। कुरान में एक-दो नहीं बल्कि 24 आयतें ऐसी हैं जिनमें काफिरों अर्थात् गैर-मुसलमानों के प्रति घृणा और हिंसा की प्रेरणा दी गयी है। इस लेख को ब्लाॅग पर लाइव करने से पहले मुझे नभाटा के सम्पादक मंडल का ईमेल मिला कि इस लेख की निम्नलिखित पंक्तियां हटाने के बाद ही लेख प्रकाशित किया जाएगा-
“वास्तव में जिन मुहम्मद के माध्यम से ये आयतें आई बताई जाती हैं, वे पढ़े-लिखे नहीं थे, बल्कि पूरी तरह अनपढ़ थे. इसलिए इन आयतों में कोई अर्थ छिपा होने की कोई संभावना नहीं है और ये सीधे-सपाट शब्दों में ठीक वही कहती हैं जो वे कहना चाहती हैं. इन आयतों के आदेशों को मानने वाला व्यक्ति केवल आतंकवादी और अत्याचारी ही बनेगा. वह शांति-पसंद व्यक्ति तो कदापि नहीं बन सकता.”
हालांकि मैं इन पंक्तियों में कुछ भी अनुचित नहीं समझता, क्योंकि इसमें एक सर्वमान्य तथ्य को ही व्यक्त किया गया है कि मुहम्मद अनपढ़ थे। लेकिन नभाटा के सम्पादक को संतुष्ट करने के लिए मैंने इनको हटाने की स्वीकृति दे दी और तब यह लेख लाइव हुआ।
जैसा कि स्वाभाविक है, इस लेख पर कई मुस्लमान भाइयों ने बहुत विरोधात्मक टिप्पणियाँ कीं. मैंने अपने मत के अनुसार उनका उत्तर दिया और कई अन्य विचारकों जिनमें राज हैदराबादी प्रमुख थे ने भी उनके उत्तर दिए. इस लेख पर हुई बहस को आप लिंक खोलकर पढ़ सकते हैं.
विजय कुमार सिंघल
विजय भाई , मैंने आप के दोनों नभाटा के ब्लॉग पड़े और सच कहूँ तो मुझे बहुत ही अछे लगे और १०० % सही लगे .मैंने यह बात बहुत दफा लिखी है कि २० करोड़ इंडिया के बीस करोड़ बंगला देश के और बीस करोड़ पाकिस्तान के मुस्लिम कभी हिन्दू या बोधि थे और अफगानिस्तान भी कभी हिन्दू देश था जैसा कि गांधारी (कंधार ) नाम से जाहर होता है और जो अभी अभी अफगानिस्तान में महात्मा बुध का बुत्त बम्बों से उड़ाया गिया है ,किया इस में भी सैक्लुरिज्म ही दिखाई देता है ?
प्रिय विजय भाई जी, उन दिनों तीन दिन में एक रचना प्रकाशित करने का प्रतिबंध था, मैं सप्ताह में एक पोस्ट ही प्रकाशित करती थी. अब तो लोग दिन में 3-4 ब्लॉग्स भी प्रकाशित कर देते हैं. इस साल से मैं भी रोज़ एक ब्लॉग प्रकाशित कर रही हूं, क्योंकि मेरे लगभग 100 ब्लॉग्स बने पड़े हैं. मुझे शुरु में ही स्व-संपादक बना दिया गया था, क्योंकि पाठक पन्ना में भी मेरी 5-600 रचनाएं छ्प चुकी थीं. आप तो जानते ही हैं, कि मुझे राजनीतिक या विवादास्पद ब्लॉग्स पढ़ने-लिखने में कोई रुचि नहीं है (आपके ब्लॉग्स तो मैं सारे पढ़ती थी ), पर जिनकी भाषा-शैली संयत व तार्किक होती थी, उनके ब्लॉग्स मैं अवश्य पढ़ती थी. आपकी बात सुनकर तो ऐसा लगता है, कि आपने इतने साल बात मन में कैसे रखी? ख़ैर आपके लिए तो अच्छा ही हुआ, अन्यथा इतनी उच्च स्तरीय पत्रिका कैसे निकल पाती!
आभार बहिन जी ! पहले नाटक पर गंभीर ब्लॉग लिखने वालों की बड़ी संख्या थी और उन पर कमेंट भी बहुत आते थे। इसलिए तीन दिन में एक ब्लॉग का नियम था। अब ऐसे ब्लॉगर बहुत कम रह गये हैं। इसलिए नियम हटा लिया होगा। कुछ दिन पहले मैं नभाटा ब्लॉग पर गया तो वहाँ १० में से ९ पोस्ट आपकी ही थीं जिनको सबसे अधिक कमेंट मिले थे। इसका मतलब है कि शेष ब्लॉगर लगभग बेकार हैं।
मैं जय विजय पर ख़ुश हूँ।