इंसान और पंछी
हर इंसान के मन में
मस्ती के भाव उठते हैं ,
और गा उठता है गीत-
पंछी बनू उड़ता फिरूं मस्त गगन में,
आज मैं आज़ाद हूँ दुनिया के चमन में,
सच एक पंछी का जीवन –
एक स्वछन्द सी ज़िंदगी ,
कभी चिड़ियों का मीठा मीठा चहचहाना,
कभी कोयल का सुरीली कू कू सुनाना,
कभी एक डॉल से दूसरी डॉल पर फुदकना
कभी दो पंछियों का चोंच मिलाकर बहकना,
और जहाँ इंसान के लिए-
मुश्किल है एक छोटी सी छलांग,
पंछी उड़ कर छू लेता है आसमान
पंछी सी ख़ुशी ,और उड़ान –
इंसान क्यों नहीं पाता है,
क्यों की–
पंछी एक एक दाना चुगने के लिए
सौ बार शीश नवाता है,
और यह खाता पीता इंसान –
सौ सौ पकवान खा कर भी
कभी प्रभु का शुक्र नहीं करता
–जय प्रकाश भाटिया,