नवरात्रे
आओ इस पावन नवरात्रे पर, मिल माता का गुणगान करें,
कन्या को देवी स्वरुप समझ, हर पल उसका सम्मान करें,
कन्या जीवन का बोझ नहीं, लड़की जीवन की जननी है,
माँ रूप सृष्टि संचालक है, और जीव सरंचना करनी है,
ममता की बन कर यह देवी, नव जीव की पालन धरती है,
खुद सह कर भी असहनीय पीड़ा, हर जन्म सार्थक करती है,
यह बेटी है, बहन है, पत्नी है, और ममता की मूरत ‘माता’ है,
हर रूप में अपने सबके लिए, हर जीवन सुख की दाता है,
कंजक रूप में ‘देवी माता’ है, घर घर में पूजी जाती है,
इसकी पूजा सुखदायी है, वर जो भी मांगों दे जाती है,
जब कली से नाज़ुक पुष्प है, यह–
क्यों फिर खिलने से पहले ही, यह डाल से तोड़ी जाती है,
धिक्कार है उन ‘वहशियों’ पर, कुकर्म जो ऐसा करते हैं,
अपने स्वार्थ और लालच में, इस पाप के भागी बनते हैं,
जिस माँ ने उनको जन्म दिया, जिस बहन ने अपना दुलार दिया,
बेटी बन पिता को प्यार दिया, पत्नी बन सुख का संसार दिया,
क्यों सब कुर्बानी भूल गए जो कन्या जन्म से मिलती हैं,
कन्या के जन्म से ही घर घर, खुशियों की बगिया खिलती है,
आओ इस पावन नवरात्रे पर, मिल माता का गुणगान करें,
कन्या को देवी स्वरुप समझ, हर पल उसका सम्मान करें,
— जय प्रकाश भाटिया