ईमानदारी
बात 1999 की है. हम पहली बार विदेश गए थे. यों तो बच्चों के साथ ही शॉपिंग करते थे, पर एक दिन टहलते-टहलते घर के पास ही एक दुकान पर हमें एक स्वेटर पसंद आ गया. बहुत बढ़िया स्वेटर और कीमत केवल डेढ़ डॉलर यानी मात्र 75 रुपए. हमने लेने का मन बनाया. दुकानदार महिला ने स्वेटर देने से पहले हमें विदेशी और अनजान देखकर कहा- ”आपने दुकान का नाम देखा है?” हमने देखा, तो वह इस्तेमाल किए हुए सामान की दुकान थी. फिर हमने स्वेटर तो नहीं ही लिया, पर उस दुकानदार महिला की ईमानदारी आज भी हमारे साथ है.
Bahut achchi madhur smiriti. Mujhe yeh panktiya bhi yad ho aayee. Aisi baani boliye man ka aapa khoy, Auran ko sheetal Karen aapahu sheetal hoye. Namaste n Dhanyawad bahan ji.
प्रिय मनमोहन भाई जी, बहुत दिनों के बाद आपके कलम दर्शन हुए हैं. आपको स्मृति मधुर लगी, यह आपके मन की मधुरता का प्रतीक है. मधुर दोहा भी मधुरिम कर गया. सार्थक प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया.
नमस्ते एवं हार्दिक धन्यवाद आदरणीय बहिन जी। मेरा कंप्यूटर कुछ ख़राब था। आज कुछ काम कर रहा है। शायद अब कुछ समय तक ठीक रहेगा। सादर।
प्रिय मनमोहन भाई जी, यह तो हम समझ ही रहे थे, कि आप इंग्लिश में लिख रहे थे, कुछ समस्या होगी. अब मनमोहन भाई आए, प्यारा-प्यारा सत्संग साथ लाए.
लीला बहन , बिदेश में तो सब नॉर्मल ही है लेकिन अगर हमारे देश में भी यह हो जाए तो कहने ही किया . मैं यह तो नहीं कहता कि हमारे देश में नहीं है लेकिन यह बातें किसी सभ्यता का हिस्सा ही बन जाए, तो ही बात बनती है .
प्रिय गुरमैल भाई जी, आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. सार्थक प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया.
काश ये ईमानदारी हर दिल में होती
प्रेरक स्मरण साझा कर हमें अनुगृहित की आप
प्रिय सखी विभा जी, आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. सार्थक प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया.