संस्मरण

नभाटा ब्लॉग पर मेरे दो वर्ष – 6

मैं प्रारंभ में अपने ब्लॉग पर गाँधी और नेहरू की देशघातक नीतियों के बारे में अधिक लिखा करता था. ऐसे कई लेख एक के बाद एक प्रकाशित हुए. मेरे इन विचारों को अधिकांश पाठक मानते थे और समर्थन करते थे, हालाँकि कुछ विरोधी भी थे. लेकिन मेरे तर्क इतने मजबूत होते थे कि आलोचक उनका कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाते थे. उनका प्रमुख तर्क यह होता था कि सारे संसार में गाँधी और नेहरू की बड़ी उज्ज्वल छवि है और इसलिए हमें उनकी आलोचना नहीं करनी चाहिए.

इस बात का उत्तर देते हुए मैंने एक लम्बा लेख 23 मार्च 2012 को “संसार में गाँधी-नेहरू की उज्ज्वल छवि क्यों?” शीर्षक से लिखा. इस लेख में मैंने एक जगह नेहरु के लिए “क्रूर और चरित्रहीन” शब्दों का प्रयोग किया था. यह लेख संपादक मंडल के पास पहुँचते ही मुझे नभाटा के प्रधान सम्पादक नीरेंद्र नागर जी का ईमेल मिला कि मैंने नेहरू के लिए इन शब्दों का प्रयोग क्यों किया है? मैं चाहता तो इसका उत्तर कारण सहित दे सकता था, लेकिन इसके बजाय मैंने लेख को संशोधित करना उचित समझा. इन शब्दों को हटाकर और शीर्षक भी संशोधित करके मैंने लेख फिर भेज दिया, जिसका लिंक नीचे है-
http://khattha-meetha.blogspot.in/2013/…/blog-post_2889.html

मुझे घोर आश्चर्य हुआ कि संशोधन के बाद भी यह लेख लाइव नहीं किया गया, हालाँकि अब इसमें कोई आपत्तिजनक बात नहीं है. मैंने उनको ईमेल भी भेजी कि इसे लाइव कीजिये. परन्तु उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया और न लेख को लाइव किया.

तब मैंने टाइम्स ऑफ़ इंडिया के सभी संस्करणों के प्रधान संपादक को ईमेल भेजी, जिसमें ससारे तथ्य रखते हुए लेख लाइव करने की प्रार्थना की गयी थी. इसकी कॉपी में नागर जी के पास भी भेजी थी.

मुझे प्रधान संपादक की ओर से तो कोई उत्तर नहीं मिला लेकिन नागर जी का ईमेल प्राप्त हुआ कि कारण बताओ कि मैंने गाँधी-नेहरू के बारे में ऐसा क्यों लिखा. मैंने उत्तर दिया तो वे संतुष्ट नहीं हुए और लेख भी लाइव नहीं किया. इसके बजाय उन्होंने मुझसे कहा कि पहले नेहरू पर फिर गाँधी पर लिखो.

इसके उत्तर में मैंने एक लेख लिखा- “मैंने नेहरू को क्रूर और चरित्रहीन क्यों कहा?” यह लेख उन्होंने लाइव कर दिया.
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/…/%E0%A4%A…

फिर मैंने गाँधी पर भी लिखा- “मैं गाँधी को पाखंडी क्यों कहता हूँ?” यह लेख भी उन्होंने लाइव कर दिया.
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/…/%E0%A4%A…

लगता है कि मेरे इन लेखों का नागर जी पर सही प्रभाव पड़ा और फिर उन्होंने मेरा वह लेख लाइव कर दिया जो दो हफ्ते से रोक रखा था.

इन तीनों लेखों को पढ़कर आप समझ सकते हैं कि गाँधी और नेहरू के बारे में मेरी धारणाएँ सुदृढ़ तर्कों पर आधारित हैं, कोरी भावनाएं नहीं हैं.

विजय कुमार सिंघल
चैत्र शुक्ल 7, सं. 2073 वि.

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: [email protected], प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- [email protected], [email protected]

4 thoughts on “नभाटा ब्लॉग पर मेरे दो वर्ष – 6

  • लीला तिवानी

    प्रिय विजय भाई जी, आपकी सटीक तर्कशक्ति को हमारे कोटिशः सलाम.

  • विजय भाई , आप के तीनों ब्लॉग पड़े और बहुत ही दिलचस्प लगे और लगता है जो स्वर्ग्य राजीव दीक्षित को यूतिऊब पर सुनता हूँ, सही लगता है ,कृपा मुझे भी दोनों पुस्तकें ईमेल कर दीजीये, मैं धीरे धीरे पडूंगा .

    • विजय कुमार सिंघल

      धन्यवाद, भाईसाहब ! मुंबई वापस पहुँचकर ईमेल करता हूँ। अभी परिवार के साथ अंडमान में घूम रहा हूँ।

      • धन्यवाद विजय भाई ,आप मज़े करें और अपनी यात्रा का वर्णन तो करेंगे ही .

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