झूठा सच !
ममा ममा!
कहता हुआ छोटा सा आदित्य रसोईघर में भाग भाग कर हांफता हुआ गिरता,संभलता आकर छुप गया था। छवि ने बहुत उत्सुकता से पूछा आदि क्या हुआ मेरे राजा बेटे को। ममा चुप करो कोई सुन लेगा आपको पता है बाहर दरवाज़े पर एक अंकल बड़ा सा थैला लेकर खड़े हैं। दादी उनसे बात करे हैं। मैं तो बहुत डर गया था ममा वो मुझे थैले में डालकर अपने साथ ले जाएंगे। आप दादी को बोलो दरवाज़ा जल्दी बंद कर दे और उससे कह दे कि आदि घर पर नहीं है। ममा ऊं ऊं करता सिसक सिसक कर आदि रोते हुए छवि के साथ सहम कर चिपक गया और रसोईघर से बाहर निकलने को तैयार नहीं था न ही ममा का हाथ छोड़ने को । पर इस छोटी सी बात ने छवि के मन में कुछ सवाल खड़े कर दिए थे शायद जब हम बच्चों को कोई काम कराने के लिए या उनकी मर्ज़ी के खिलाफ कुछ कराना चाहें तो हम ज्यादातर उनके मन में बिल्ली भाऊं या थैले वाले बाबा का डर बिठाते हैं जो शायद उनके कोमल मन में इस कदर बैठ जाता है कि वो उसके आभास से कांप जाते हैं। छवि ने आदि को गले से लगाकर रसोईघर से बाहर लाया और दरवाज़े पर जाकर बताया कि आदि वो तो बस घर का पुराना सामान इकट्ठा करते हैं यह उनका काम है । वो देखो उनके थैले में टूटा फूटा पुराना सामान है और कुछ नहीं, डरो मत! पर छवि भी अपने द्वारा आदि के मन में बिठाए डर के लिए असंमजस में थी।