कविता

“हाइकु”

वो पहाड़ है
तमतमाया हुआ
मानों हिला है॥
धूल उडी है
आस पास बिखरी
हवा चली है॥
हलचल है
अंदर ही अंदर
शुष्क नमी है॥
सड़क पर
औंधे मुंह गिरा है
जहां जमीं है॥
निकलेगा वो
कारवां लिए हुए
शिला चली है॥
रोक लो उसे
गिरते ही उठेगी
खलबली है॥

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ

4 thoughts on ““हाइकु”

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    अच्छे हैं

    • महातम मिश्र

      सादर धन्यवाद आदरणीया,विभा रानी श्रीवास्तव जी

  • हाइकु अछे लगे .

    • महातम मिश्र

      सादर धन्यवाद आदरणीय श्री भमरा सर जी

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