संस्मरण

मेरी कहानी 122

फुफड़ जी तो चले गए थे और साथ ही सब रिश्तेदार और सुरिंदर भी अपने अपने घरों को रवाना हो गए। धीरे धीरे ज़िंदगी फिर से चलने लगी और घाव भरने लगे। सुरिंदर भी अपने दोनों बच्चों के पालन पोषण में मसरूफ हो गई। उस के पति ने एक दूकान ले ली थी और दोनों उस में काम करने लगे थे। कुछ साल तो ऐसे लगता था कि दोनों आपस में ठीक ठाक हैं और जब भी आते थे, कोई ऐसी बात दिखाई नहीं देती थी, जिस से पता चले कि आपस में खुश थे या नहीं लेकिन धीरे धीरे लगता था, कुछ ठीक नहीं है। उन से हमारा मिलन तो कभी कभी ही होता था क्यूंकि वह बर्मिंघम ही आते और वहां से वापस चले जाते।

इधर निंदी भी स्कूल की पढ़ाई ख़त्म करके एक वर्कशॉप में काम पर लग गया था जो उस के लिए बाद में बहुत फायदेमंद साबत हुआ और अब उस की खुद की वर्कशॉप है। अब बुआ चाहती थी कि निंदी की शादी हो जाए क्यूंकि बड़ा भाई जिन्दी डैंटिस्ट बनके लन्दन काम करने लगा था और उस ने भी एक जर्मन लड़की से शादी करा ली थी। फुफड़ जी चले गए थे और बुआ और निंदी अकेले ही घर में रहते थे। एक दिन बुआ का टेलीफोन आया कि निंदी के लिए एक लड़की देखी है और हम भी आएं और लड़की को देख लें। एक रविवार को हम बच्चों को ले कर बुआ के घर जा पहुंचे। लड़की के माँ बाप बुआ फुफड़ को पहले से ही जानते थे। क्यूंकि निंदी के मामा जी का घर सामने ही था, इस लिए प्रोग्राम निंदी के मामा मघर सिंह के घर ही होना था।

जिस लड़की के बारे में बात होनी थी, उस की बड़ी बहन और उन के पिता जी भी आये हुए थे। बहुत ही खुशगवार वातावरण था। लड़किओं के बाप एक पोस्ट ऑफिस चलाते थे और दोनों बहनें उस में काम करती थीं। चाय बगैरा पी कर निंदी और लड़की को प्राइवेट बात करने के लिए दूसरे रूम में भेज दिया गया। कुछ देर बाद दोनों आ गए और फैसला सोच कर जवाब देने के लिए तय हो गया ताकि दोनों कुछ दिन सोच विचार लें। कुछ दिनों बाद बुआ का टेलीफोन आया कि निंदी माना नहीं और इंकार करता है। बात यहीं खत्म हो गई। लड़की के बाप ने भी कोई मौजूसी नहीं दिखाई और कहा कि इस से उन के सम्बन्धों पर कोई फरक नहीं पड़ेगा।

इस के कुछ महीने बाद एक और लड़की के बारे में बात चली। यह लड़की अर्डिंग्टन में थी। रविवार का दिन था और बुआ निंदी लड़की वालों के घर कुछ देर पहले पहुँच गए थे और हम घर ढूँढ़ते ढूँढ़ते यूं ही घर के नज़दीक पहुंचे तो पता नहीं हमारी गाड़ी को किया हुआ,कि एक दम गाड़ी की सस्पैंशन टूट गई और गाड़ी बेकाबू हो कर एक खड़ी गाड़ी में इतने जोर से लगी कि स्ट्रीट के सभी लोग घरों से बाहर निकल आये, बच्चों ने चीखें मार दीं। पहले बच्चों की तरफ मैं ध्यान दिया और भगवान् का शुकर था कि किसी को चोट नहीं आई। जिस की गाड़ी थी, वह भी बाहर आया तो वह हमारा एक दूर का रिश्तेदार ही निकला, उस ने आते ही पहले हमारा हाल चाल पुछा, तो हम ने उस को बताया कि हम सब ठीक ठाक हैं।

दरअसल हमें पता ही नहीं था कि हमारे यह रिश्तेदार यहीं रहते थे क़्योंकि ना तो हम कभी इन के घर कभी गए और ना ही वह कभी आये थे। जिस घर में हम ने निंदी के लिए लड़की देखने जाना था वह साथ का घर ही था। पहले तो हम अपने इस रिश्तेदार के घर ही चले गए और बाद में निंदी और बुआ भी इसी घर में आ गए। पहले तो हम ने अपनी गाड़ियों के डीटेल एक दूसरे को दिए और फिर इंशोरेंस वालों को टेलीफोन किया ताकि वह गाड़ी ले जाएँ। हमारा यह रिश्तेदार हंस कर बोला, ” आज ही यह गाड़ी गैरेज से बन कर आई थी, इस पे बहुत काम करने वाला था और आज यह फिर वापस चली जायेगी”. कसूर तो मेरा कोई नहीं था लेकिन भीतर से मैं गिल्टी महसूस कर रहा था। खैर, बातें होने लगी और हम ने अपने आने का मकसद बताया तो हमारे इस रिश्तेदार ने बोला कि लड़की वालों को हम यहीं बुला लेते हैं।

हमारे इस रिश्तेदार की पत्नी लड़की वालों के घर गई और उन सब को बुला लाई। लड़की स्मार्ट और भली लग रही थी, उस के माँ बाप और दो छोटे भाई साथ थे। लड़की ने हाथ जोड़ कर सब को सत सिरी अकाल बोला और सभी बैठ गए। सधाहरन बातें होने लगी और कुछ देर बाद चाय भी आ गई। चाए पीते पीते निंदी और वह लड़की भी आपस में बातें करने लगे। वातावरण ऐसा था जैसे सभी पहले से ही एक दूसरे को जानते थे। चाय खत्म करके निंदी और लड़की को एक दूसरे से बात करने के लिए दूसरे रूम में भेज दिया गया। कोई आधे घंटे बाद दोनों बाहर आ गए और उन के चेहरों से लगता था कि बात बन गई थी। माहौल बहुत अच्छा था और अब हम वापस आने को तैयार हो गए, जब बाहर आये तो किसी गैरज से हमारी गाड़ी को लेने के लिए दो मकैनिक आ गए थे, वह इस को tow करने की तयारी करने लगे और हम सब निंदी की गाड़ी में ही घुस गए और अपने घर को चल दिए।

घर आ कर बातें होने लगी और निंदी की बातों से लगता था कि उस का फैसला हाँ में ही था। शाम को निंदी हम सब को हमारे घर छोड़ गया। तकरीबन दो हफ्ते बाद बुआ का टेलीफोन आया कि वहां रिश्ता होना संभव नहीं था। बुआ पुराने विचारों की है, कहने लगी कि घर जाते ही जो एक्सीडेंट हुआ था, उस से लगता है कि यह शादी ठीक नहीं है। कुलवंत ने बूआ को बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन बुआ मानी नहीं। यह बात भी अधूरी रह गई।

इस के कुछ महीने बाद एक और जगह बात चली, लड़की सुन्दर थी और इस लड़की के पिता जी एक मार्केट ट्रेडर थे . लड़की का नाम था कुलविंदर। अब यहाँ बात बन गई, कुलविंदर और निंदी दोनों खुश थे। अब शादी की तैयारियां होने लगीं। सब खुश थे, बुआ तो बहुत ही खुश थी क्यूंकि अब घर में रौनक होने वाली थी और बुआ का अकेलापन खत्म होने वाला था। कार्ड छपवा लिए गए और सब रिश्तेदारों को दे दिए गए। अब एक दफा फिर वोही पकवान बनने शुरू हो गए और निंदी की ताई ने फिर से पैर जमा लिए थे, वोही कमरा और वह ही घर के सदस्य। निंदी की भरजाई रानी भी आ गई थी। सुरिंदर और उस के पति भी बच्चों के साथ आ गए थे।

यह सब सुरिंदर की शादी के समय वाला ही रीपीट सीन था लेकिन इस दफा एक बात हट्ट कर हुई थी। यूं तो शादी के बाद बरातियों को खाना गुर्दुआरे में ही था लेकिन बुआ ने शाम को रिसेप्शन पार्टी देने का प्रोग्राम बना लिया था। पहले सभी लोग बरातियों को खाने का प्रोग्राम गुर्दुआरे में ही रखते थे लेकिन अब कुछ लोग बरातियों और अपने सभी रिश्तेदारों को पार्टी देने लगे थे। क़्योंकि अभी पैलेस हाल होते नहीं थे, इस लिए लोग किसी स्कूल का हाल किराए पर ले लेते थे, जिस का किराया स्कूल वालों को दे देते थे। बीयर सर्व करने के लिए किसी पब्ब वाले या किसी औफ लाइसैंस वाले से कॉन्ट्रैक्ट कर लेते थे और विस्की ब्रांडी के बॉक्स खुद खरीद कर हाल में ले आते थे।

अभी भी बेयरे नहीं होते थे और कुछ लड़के पार्टी के दिन सुबह से ही हाल में जा कर मेज़ कुर्सियां लाइनों में रख देते थे और टेबलों के ऊपर एक वाइट पेपर बिछा देते थे जो एक बड़े रोल में होता है, हाल को बलून और तरह तरह के फूलों से सजा देते, कनफैटी के डिब्बे एक जगह रख देते। स्टेज को सैट कर दिया जाता क्यूंकि अब गाने वाले बहुत से ग्रुप बन गए थे जो सिर्फ हारमोनियम और ढोलकी के साथ ही गाते थे। टेबलों पर प्लेटें चमचे और ग्लास रख देते। कोक और तरह तरह के जूस की बड़ी बड़ी बोतलें रख देते ओर साथ ही पीनट और क्रिस्प (इंडिया में चिप्स ) रख देते। बीयर वाले नज़दीक ही बीयर के ड्रम और उन के साथ पम्प फिक्स कर देते। जितने तरह की बीयर होती, उतने ही पम्प होते और साथ ही वह चार पांच सौ बड़े बड़े बीअर के ग्लास रख देते। सर्व करने का काम सब लड़के मिल जुल कर करते थे। पम्प वाले बीअर के ग्लास भरते जाते और लड़के चार पांच ग्लास एक ट्रे में रख कर लिए जाते और महमानों के सामने टेबल पर रखते जाते।

एक बात अब और अच्छी हो गई थी, वह थी केटरिंग का काम। इस केटरिंग के काम में हमारे दोस्त जगदीश की तरह बहुत लोग हो गए थे, यह केटरर खाने तैयार करके बड़े बड़े पतीलों में हाल में छोड़ जाते थे और सर्व घर वाले और बहुत से लड़के मिल कर करते थे। काम करने वाले लड़कों की कोई कमी नहीं होती थी और यह काम सब ख़ुशी ख़ुशी मिल कर करते थे। इस में सब से अच्छी बात यह हो गई थी कि कप प्लेटें चमचे सब डिस्पोजेबल हो गए थे और कुछ भी धोने की जरुरत नहीं होती थी। आज तो यह सब होटलों में ही होता है लेकिन उस समय ऐसे हाल ही किराए पर ले कर खाने का प्रोग्राम होता था। यह सब मैंने इस लिए ही लिखा है कि यह वातावरण इतना रौचक मई होता था कि इस में भी एक लुफ़्त होता था।

गुरूद्वारे में निंदी की शादी हो गई और शादी के बाद खाना खा कर सभी अपने अपने घरों को चले गए लेकिन हम बहुत से लड़के हाल में चले गए जो किसी स्कूल का था और स्कूल का नाम मुझे याद नहीं। कुछ ही घंटों में हम ने मेज कुर्सियां लगा दीं, बीयर वालों ने पम्प फिट कर दिए और शाम को धीरे धीरे महमान आने शुरू हो गए। गाने वाले लड़के भी आ गए और स्टेज पर लाऊड स्पीकरों को तरतीब से रखने लगे। निंदी के काम के बहुत से अँगरेज़ दोस्त और और उस का मैनेजर जो बाद में निंदी का पार्टनर भी बन गया था,भी सब आ गए थे। निंदी के अँगरेज़ दोस्तों के बारे में लिखने का मेरा मतलब यह है कि अगर आप इन के घर जाएँ तो यह गोरे लोग किसी को चाय भी नहीं ऑफर करते, यह इन की सभ्यता ही है, इस को मैं इन का कोई दोष नहीं समझता लेकिन हम इंडियन लोग घर में कोई महमान आये को जबरदस्ती खिलाते पिलाते हैं क्यूंकि हमारी मेहमाननवाज़ी तब तक पूर्ण नहीं होती जब तक मेहमान कुछ खा ना ले।

धीरे धीरे हाल भरने लगा, औरतें बच्चे खाने पीने लगे, बियर के ग्लासों से मेज़ भर गए,गाने वाले गाने लगे। इस में एक बात हंसने वाली है,जब अँगरेज़ मेहमानों के सामने ग्लास रखे तो वह पी नहीं रहे थे, वह इस बात की इंतज़ार में थे कि उन्होंने इस बियर के पैसे किस को देने थे। मैंने ही उन को पूछा कि वह बियर क्यों नहीं पी रहे और अगर यह बियर उन की मन पसंद नहीं तो उन की पसंदीदा बियर लाई जाए ! एक गोरा पूछने लगा कि पैसे किस को देने हैं ? मैंने भी हैरान हो कर कहा कि भाई ! यह फ्री है और जी भर कर पिएं ,और इस बियर के बाद विस्की बकार्डी की बोतलें आएँगी और जो किसी की पसंद हो, मज़े से पिएं। बस फिर किया था, गोरे गोरीआं तो बियर पर टूट पड़े और हैरान हुए मज़े करने लगे।

इस बात से गोरे भी पहले कुछ अजमंजस में थे क़्योंकि जब गोरे लोग पार्टियां करते हैं तो हाल में सब को अपना पसंदीदा ड्रिंक काउंटर से मोल लेना पड़ता है और गोरे तो अपने अपने घर से भी वाइन की बोतलें ले कर जाते हैं और अपने होस्ट को देते हैं और यहां सब कुछ उन के टेबलों पर रखा हुआ था। गोरे लोग तो डिनर के पैसे भी खुद ही देते हैं और यहां तो खाने के लिए भी अब फ्री था। एक घंटे बाद हम ने विस्की बकार्डी की बोतलें भी सारे टेबलों पर रख दी। अँगरेज़ तो हैरान ही हो गए जब चिकन कबाब और सलाद की प्लेटें भी उन के सामने रखी जाने लगीं।

अब गाने वाले लड़के गा रहे थे, और लड़के लड़कियां डांस फ्लोर पर नाच रहे थे। कुछ देर बाद एक टेबल पर एक सुन्दर केक रख दिया गया, इर्द गिर्द सब इकठे हो गए, निंदी और कुलविंदर ने केक काटा और साथ ही क्रैककर और कनफैटी ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया, निंदी की भाबी रानी तो कनफैटी से भरी हुई थी, तालिआं बज रही थीं और निंदी ने शैम्पेन की बोतल खोली तो झाग दूर तक गई, दोनों ने शैम्पेन के ग्लास एक दूसरे को सिप कराये और अब ऐसे लगने लगा जैसे सब के सर पर कोई भूत सवार हो गया हो।

गाना था,” तूतक तूतक तूतिआं, हई जमालो “. इस गाने पर सब ने अपना जोर लगा दिया था, छोटे बड़े यहां तक कि निंदी का मामा मघर सिंह भी सरूर में आ गया था और तालियां बजा रहा था। इस में सब से अजीब और हंसी वाली बात यह हुई कि जिस मघर सिंह की बहु उस के सामने कभी बैठती नहीं थी क्यूंकि मघर सिंह बहुत ही पुरातन विचारों का था, अब उस की बहु खूबसूरत साड़ी में उस के सामने डांस कर रही थी और मघर सिंह भी ख़ुशी में मुस्करा रहा था। गोरे गोरीआं अपने टेबल पर शराबी हुए ऊंची ऊंची हंस रहे थे।

मैं अचानक हाल के बाहर गया तो निंदी का भाई जिन्दी रो रहा था और बुआ उस को मना रही थी कि ” तू क्यों फ़िक्र करता हैं, में जो हूँ “. दरअसल जिन्दी अपने डैडी को याद करके रो रहा था और उस को मिस कर रहा था कि काश वह अब होता तो कितना खुश होता। जिन्दी को हम शांत करा के हाल में ले आये और उस को डांस फ्लोर पर ले आये, और अब वह भी डांस करने लग गया था। रात के दस बजे तक यह काम चलता रहा और जब हम हाल से बाहर आये तो कुछ गोरे गोरीआं शराबी हुए घास पर पड़े थे, अपनी अपनी गाड़ियों में सब जाने लगे लेकिन गोरे कैसे गए होंगे किसी को पता नहीं। आज तो शादियां बहुत कलरफुल हो गई हैं लेकिन उस समय की हमारे लिए यह पहली ऐसी शादी थी।

चलता. . . . . . . . . .

10 thoughts on “मेरी कहानी 122

  • मनमोहन कुमार आर्य

    नमस्ते। पूरी किश्त पढ़कर आनंद लिया। कहते हैं कि शादी विवाह संयोग से होते हैं व पूर्व निर्धारित होते हैं। यह बात कहाँ तक सत्य है पता नहीं? यह शादी वर व बधु की अपनी पसंद का हुई व सभी रिश्तेदार भी प्रसन्न है, यह सुखद बात है। दावत का आपने सजीव वा जीवंत वर्णन किया है जिसे पढ़कर आनंद आया। ईश्वर ने यह संसार मनुष्यों के सुख के लिए ही बनाया है। यह खुशियां उसकी देन हैं। जिन्हे खुशियां नसीब होती होती हैं उन पर ईश्वर की रहमत है। आज की किश्त का पूरा वृतांत रोचक व मधुर है। हार्दिक धन्यवाद आदरणीय श्री गुरमैल सिंह जी। आज ही एक पडोसी युवक ने मेरा कंप्यूटर ठीक किया है। ईश्वर की यह भी कृपा रही। सादर।

    • मनमोहन भाई , सब से पहले कम्पिऊतर ठीक होने की बहुत ख़ुशी है किओंकि छोटी सी बाधा पड़ने से हमारा काम विराम की हालत में आ जाता है, दुसरे यह किश्त भी आप को अच्छी लगी, आप का धन्याद करता हूँ किओंकि कोई लिखे और कोई उस पर अपनी प्र्तिकिर्य दे तो आगे लिखने के लिए हौसला मिल जाता है . शादी विवाह ही इस संसार कायम रखते हैं लेकिन यह सब सुखद ढंग से हो और गृहस्थ जीवन अच्छा रहे तो हम कह सकते हैं कि हम प्रभु का शुकराना करते हैं, बस आशा यही होती है लेकिन सब ठीक ना हो, तो भी उस की इच्छा ही कहेंगे .

  • धन्यवाद बहन जी , मह्मान्निवाज़ी में हम भारती शायेद सारी दुनीआं में सब से आगे हैं और यह हमारे लिए फखर की बात है किओंकि यहाँ रहते हुए ही मैंने यह महसूस किया है .

  • धन्यवाद बहन जी , मह्मान्निवाज़ी में हम भारती शायेद सारी दुनीआं में सब से आगे हैं और यह हमारे लिए फखर की बात है किओंकि यहाँ रहते हुए ही मैंने यह महसूस किया है .

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    मेहमाननवाज़ी हिन्द की पहचान सदियों से चली आ रही है
    आपके सस्मरण बेहद रोचक लगे
    सादर

  • लीला तिवानी

    प्रिय गुरमैल भाई जी, भारतीय कहीं भी हों, शगुन-अपशगुन कम ही भूल पाते हैं. शादी में गोरों-गोरियों की तो आप लोगों ने मौज ही लगवा दी. अति सुंदर व रोचक एपीसोड के लिए आभार.

    • हा हा ,लीला बहन ,गोरे गोरीआं तो हम भारतीओं के घरों में भी जब आते हैं तो कुछ भी खाने के लिए इनकार नहीं करते . शगुन -अप्शुगन की बातें तो हम भारती छोड़ते ही नहीं और इस बात से गोरे हम से बहुत आगे हैं .

    • हा हा ,लीला बहन ,गोरे गोरीआं तो हम भारतीओं के घरों में भी जब आते हैं तो कुछ भी खाने के लिए इनकार नहीं करते . शगुन -अप्शुगन की बातें तो हम भारती छोड़ते ही नहीं और इस बात से गोरे हम से बहुत आगे हैं .

  • लीला तिवानी

    प्रिय गुरमैल भाई जी, आखिरकार निंदी को दुल्हनिया मिल ही गई, तभी हम निंदी की शादी का इतना रोचक वर्णन पढ़ पाए. अति सुंदर व रोचक एपीसोड के लिए आभार.

    • धन्यवाद लीला बहन , यह शादी बहुत ही मजेदार थी .

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