ग़ज़ल : जो भी मुझसे लिखवाता, लिखता हूँ
सच्चे को सच्चा लिखता हूँ झूठे को झूठा लिखता हूँ.
फिर भी दुनिया ये कहती है इस युग में ऐसा लिखता हूँ.
ना उनसे कुछ झगड़ा-झंझट ना ही कोई लेना-देना,
बस उनको इतनी दिक्कत है-मैं उनसे अच्छा लिखता हूँ.
इस दुनिया में सबसे छोटी है मेरे सपनों की दुनिया,
इक सपना पूरा हो जाता तब दूजा सपना लिखता हूँ.
कितने लोग बड़े बनने को आपस में लड़ते रहते हैं.
मुझको लड़ना रास न आता मैं ख़ुद को छोटा लिखता हूँ.
सच तो ये है क्या कोई कुछ अपनी मर्ज़ी से लिख पाता,
वो अपनी मर्ज़ी से जो भी मुझसे लिखवाता, लिखता हूँ.
— डाॅ. कमलेश द्विवेदी
मो.09415474674