लफ्ज
मुझे नही आता
हुनर
सीपीयों से मोती
ढूढने का
मजहबों से लहू
और
लहू से महक
ढूढने का
मै तो
मन की
गुफा से
मुहब्बतों के रंग
ढूढती हूँ
ज़जबातों से
लिपटा दर्द
और
उम्मींदो के
फटे पुराने
कफन
टटोलती
अंदर से
ढूढती हूँ
उनकी
आत्मा के लिए
उसी के
नाप के लफ्ज़
फिर वही लफ्ज़
करते हैं
तर्जुमानी
मेरी
कविता की …..!!
— रितु शर्मा